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९०/ सत्य दर्शन किन्तु साथ ही जोड़ देते हैं, पर क्या किया जाए? और इस प्रकार इस सर्वव्यापी 'पर' के द्वारा हर चीज को कुचल देते हैं ।
जहाँ इस प्रकार की दुर्बलताएँ पायी जाएँगी, वहाँ सत्य प्रस्फुटित नहीं हो सकता। . सत्य की आराधना और उपासना जिन्हें करनी है और सत्य को ही जो अपने जीवन का महत्त्वपूर्ण उद्देश्य बनाना चाहते हैं, उन्हें वे दुर्बलताएँ त्याग देनी होंगी। उन्हें दृढ़तापूर्वक समग्र प्राणशक्ति एकाग्र करके सत्य का ही अनुसरण करना होगा। ऐसा करने पर ही सत्य भगवान् की वरद छाया आप प्राप्त कर सकेंगे।
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