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सत्य दर्शन / ७५
कल्पना कीजिए, हम या आप में से कोई साधक है। इसके पास एक देवता आकर सन्देश देता है। कहता है-" आपको मोक्ष मिल सकता है, किन्तु आप पहले नरक में जाएँ । नरक में दस-बीस हजार वर्ष तक दुःख भोग लेने के पश्चात् आपको मोक्ष मिल जाएगा।" दूसरी ओर वही देवता कहता है-"यदि आप देवलोक में जाना चाहें, तो वहाँ कोटाकोटि सागरोपम पर्यन्त स्वर्गीय सुख भोग लेने के पश्चात मोक्ष मिलेगा।” स्पष्ट है कि नरक में जाने पर अल्पकालीन दुःख है और स्वर्ग में जाएँगे, तो बहुत लम्बे समय तक सांसारिक सुख मिलेगा । किन्तु सुख या दुःख भोग लेने कें पश्चात् ही मोक्ष मिलेगी। ऐसी स्थिति में साधक कहाँ जाना स्वीकार करे ? आपके सामने यह दो विकल्प रख दिये जायँ, तो आप किसे स्वीकार करेंगे ?
आपके मन की बात मैं नहीं जानता। संभव है आप नरक के दुःखों से बचना चाहें और देवलोक के सुखों का प्रलोभन न छोड़ सकें। ऐसा हो तो समझ लेना चाहिए कि अभी आपकी साधना का परिपाक नहीं हुआ है। अभी तक आप सच्चे साधकों की कोटि में नहीं आए हैं। सच्चे साधक के मन में दो विकल्प उठ ही नहीं सकते। उसके पाए एक ही उत्तर है कि वह यह कि मुझे नरक और स्वर्ग से कोई मतलब नहीं है। मेरा एकमात्र उद्देश्य अपनी आत्मा को बन्धनों से छुड़ाना है। अतएव जो जल्दी का रास्ता है, वही मुझे पसन्द है ।
बात अटपटी-सी लगती है, किन्तु गहरा विचार करने पर मालूम हो जाता है कि कोई लम्बा रास्ता क्यों ले ? मोक्ष का स्वरूप जिसके ध्यान में आ गया है, वह स्वर्ग का लम्बा और चिरकाल में तय होने वाला रास्ता क्यों लेगा? नरक का रास्ता ऋष्टकर होते हुए भी यदि सीधा है और शीघ्र ही पार किया जा सकता है, तो साधक उस पर जाने से क्यों हिचकेगा?
मैं नरक या स्वर्ग में जाने की बात नहीं कहता। मैं यह कहता हूँ कि नरक में जाने से जल्दी मोक्ष मिलती है, तो साधक नरक में जाने के लिए भी तैयार रहेगा ।
श्रेणिक को नरक में जाने की बात मालूम हुई, तो वह रोता रहा है और प्रभु के चरणों में पड़ता रहा है। किन्तु भगवान् ने कर्माया "क्या बात है, क्यों रोते हो ? चौरासी हजार वर्ष तक नरक के दुःख भोगने के बाद, एक दिन तुम भी मेरे समान ही तीर्थंकर बनोगे।" भगवान की यह वाणी कान में पड़ते ही श्रेणिक हर्ष से विभोर होकर नाचने
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