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सत्य दर्शन/४३
छिप जाएगा। सत्य के बदले अंहकार ही आपके हाथ लगेगा और इस प्रकार आपका अहंकार ही आपको ठग लेगा।
सत्य का मार्ग तलवार की धार के समान तीखा तो बतलाया ही गया है, हमारे एक सन्त ने तो यहाँ तक कहा है कि तलवार की धार भी इसके आगे कुछ नहीं है। सन्त आनन्दघन कहते हैं
धार तरवार की सोहिली, दोहिली चौदमा जिनतणी चरण-सेवा । धार पर नाचता देख बाजीगरा, सेवना धार पर रहे न देवा ।
- भ. अनन्तनाथ की स्तुति आनन्दघन जी कहते हैं-उस प्रभु की सेवा बड़ी ही कठिन है। वह सेवा धूप-दीप की सेवा नहीं है, चढ़ावे की सेवा नहीं है और सिर झुकाने की भी सेवा नहीं है। यह सब सेवाएँ तो बहुत आसानी से हो सकती हैं और हमारे आध्यात्मिक क्षेत्र में उनका कोई स्थान भी नहीं है। प्रभु के मार्ग पर चलना, सत्य के मार्ग पर चलना ही प्रभु की उपासना या सत्य की उपासना है।
आज समाज ने स्थूल सेवा का रूप पकड़ लिया है। वह रूप नाटकीय ढंग से जीवन में उतर गया है। लोग उसी रूप पर मुग्ध हैं और उससे आगे की कुछ सोचते भी नहीं हैं । मगर सन्त आनन्दघन कहते हैं कि-अमुक ढंग से उठना, बैठना, सिर झुकाना या कोई चीज चरणों में चढ़ा देना आदि की सेवाएँ तलवार की धार से तेज नहीं हैं, बल्कि तलवार की धार पर चलना, नाचना और उछलना-कूदना तो सहज है, मुश्किल नहीं है। यह तो शरीर की अंग-भंगियाँ हैं, शरीर की विशेषताएँ हैं। शरीर पर नियंत्रण कर लेने से तलवार की धार पर नाचा जा सकता है और हजारों आदमियों की तालियों की गड़गड़ाहट भी प्राप्त की जा सकती है, मगर जिनेश्वर देव की सच्ची सेवा करना बड़ा ही कठिन है।
सन्त आगे कहते हैं-तलवार की धार पर तो साधारण से साधारण आदमी भी और बाजीगर भी नाच लेता है और अपना तमाशा दिखा जाता है ; यह तो मामूली बात है। किन्तु सेवा की धार इतनी तेज और नुकीली है कि उस पर तो देवताओं के भी पैर
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