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२६ / सत्य दर्शन जीवन पर बोझ की भाँति लादा जाता है। सत्य जीवन का स्वरूप है और असत्य उस जीवन का विरूप है। ___ आज आपका क्या हाल है ? आप सत्य से दूर चले गए हैं । असत्य के मैदान में खड़े हो गए हैं। दुकान में, दफ्तर में, राजनीति के क्षेत्र में, समाज में, जाति में, यहाँ तक कि धार्मिक क्षेत्र में भी असत्य ने अड्डा जमा लिया है। चारों ओर, जीवन के इर्द-गिर्द असत्य का साम्राज्य है। इसी कारण अब कहा जाता है कि 'सत्य बोलना सीखना पड़ेगा।
एक सज्जन ने मुझे एक परिवार की बात बतलाई। कोई महाशय बाहर से आए और गृह-स्वामी को आवाज लगाने लगे। जब आवाज लग रही थी, तो घर का मालिक घर में ही मौजूद था ; किन्तु परिस्थिति-वश आगन्तुक से मिलना नहीं चाहता था। आगन्तुक भी जल्दी टलने वाला नहीं था। वह द्वार पर डटा रहा और आवाज पर आवाज लगाता रहा । निरुपाय होकर घर के मालिक ने अपने छोटे बच्चे से कहा-"नीचे जाकर उस आदमी से कह दे कि बाबूजी घर में नहीं हैं ।" लड़के ने जाकर कह दिया–'बाबूजी कहते हैं कि बाबूजी घर में नहीं हैं।"
इतना सुनकर आगन्तुक बेधड़क ऊपर चला गया और बोला “हजरत ! यह सब क्या है ?" घर के मालिक ने पूछा-"आपको मेरा घर में होना कैसे मालूम हो गया?" उसने उत्तर दिया-"आपका यह बच्चा संदेश लेकर आया था-बाबूजी कहते हैं कि बाबूजी घर में नहीं हैं !“ यह सुनकर बाबूजी अपने बच्चे पर आँखों से आग बरसाने लगे। मगर बेचारे बालक का क्या अपराध था? वह झूठ बोलने की कला में निष्णात नहीं हो पाया था। जब वह बोला तो सरल-भाव से सच ही मुँह से निकल गया।
तात्पर्य यह है कि संसार में आज सर्वत्र असत्य का साम्राज्य है और बालकों को असत्य बोलने की ट्रेनिंग दी जाती है। बच्चों को सिखलाया जाता है कि सत्य तो बोलो, किन्तु हमारे ही सामने बोलो और दुनिया भर में झूठ बोलो ! मगर बाहर असत्य बोलने की शिक्षा पाकर बालक की आदत में असत्य बोलना शामिल हो जाता है और फिर वह माता-पिता से भी असत्य ही बोलने लगता है। तब उन पर मार पड़ती है और कहा जाता है कि झूठ क्यों बोलते हो? इसका अर्थ यह है कि जहाँ किसी प्रकार के स्वार्थ का प्रश्न है तो कहेंगे कि झूठ बोला करो और जब अपना काम है तो कहेंगे सत्य बोला
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