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३०/ सत्य दर्शन
खरीद ली। जब वह उसे दुहने जाता है, तो वह लात मारती है। एक-दो दिन निकल गए, तो वह घबरा गया। सोचने लगा-अच्छी बला गले पड़ी ! प्रतिदिन चारे वगैर से इसका पोषण करता हूँ, और दूध के नाम पर यह लातें लगाती है ! उसने गाय को बेच डालने का विचार किया, मगर ऐसी गाय को खरीदेगा कौन ?
वहीं पास में एक भगत जी रहते थे। माला फेरने से प्रसिद्ध हो गए थे। भक्तों में उन्होंने अपना नाम लिखा लिया था। सोच-विचार कर गाय का मालिक उसके पास पहुँचा । बोला-'भगत जी, हम तो लुट गए !
भगत जी बोले-क्यों भाई क्या हुआ ?
गाय वाला-हम गाय खरीद लाए, किन्तु वह दूध नहीं देती और बिकती भी नहीं है।
भगत जी-इसकी क्या चिन्ता है ? गाय हम बिकवा देंगे। गाय वाला–बहुत दया होगी आपकी, मगर बिकवाएँगे कैसे ? भगत जी-गाय का खरीददार आए तो उसे मेरे पास ले आना।
आखिर खरीददार आया। गाय को देख कर बोला-गाय तो बड़ी खूबसूरत और तगड़ी है । दूध का क्या हाल है ?
___ गाय वाले ने कहा मेरे कहने से क्या होगा? पड़ौस में जो भगत जी हैं, उन्हीं से पूछ लीजिए।
खरीददार भगत जी के पास पहुँचा । बोला-आपके पड़ौसी की गाय लेनी है। भगत जी मौन रहे और माला जपते रहे। खरीददार ने प्रश्न किया-भगत जी, वह गाय कितना दूध देती है ?
भगत जी ने सामने पड़े हुए एक बड़े पत्थर की ओर इशारा कर दिया। खरीददार ने समझा-"पत्थर सात-आठ सेर का है, तो गाय इतना ही दूध देती होगी।"
खरीददार ने वापिस लौटकर रुपये गिन दिए और गाय ले ली। गाय वाले ने कहा आप पूछताछ करके गाय खरीद रहे हैं । अब मेरा कोई वास्ता नहीं है !" खरीददार ने कह दिया–ठीक है?
अगले दिन जब वह गाय को दुहने बैठा, तो गाय ने उसके कपाल पर लात जड़ दी। सोचा-नई जगह आई है, अपरिचित है, ठिकाने आ जाएगी। दूसरे दिन पुचकार
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