________________
(३५) माला रोपण कराते हो। यह सत्य है मालारोपण करानी श्री महा निशीथ सूत्र में कही है।
(३६) अशोक वृक्ष बनाते हो, यह श्रावक का धर्म है।
(३७) अष्टोत्तरा स्नात्र कराते हो। यह श्रावक की करणी है, और इस सें अरिहंत पदका आराधन होता है, यावत् मोक्ष सुख की प्राप्ति होतीहै, श्रीरायपसेणी सूत्र प्रमुख सिद्धांतोंमें सतरां भेद . सें यावत् अष्टोत्तरशत भेद तक पूजा करनी कही है।
(३८) प्रतिमा के आगे नैवेद्य धराते हो यह उत्तम है, इस सें अनाहार पद की प्राप्ति होती है। श्रीहरिभद्रसूरि कृत पूजापंचाशक, तथा श्राद्ध दिन कृत्य बगैरह ग्रंथों में यह कथन है ।
(३९) श्रावक और साधु के मस्तकोपरि वासक्षेप करते हो, यह सत्यहे कल्पसूत्रवृत्ति वगैरह शास्त्रों में कहाहै परंतु तुम(ढंढक) दीक्षा के समय में राख डालने हो सो ठीक नहीं है, क्योंकि जैन शास्त्रों में राख डालनी नहीं कही है।
(१०) नांद मंडाते हो लिखा है, सो ठीक है, नांद मांडनी शास्त्रों में लिखी है । श्री अंगचूलिया सूत्र में कहा है कि व्रत तथा दीक्षा श्रीजिनमन्दिर में देनी-- यतः
तिहि नखत्त महत्त रविजोगाइय पसन्न दिवसे अप्पा वोसिरामि। जिणभवणाइपहाणखित्ते गुरू वंदित्ता अणडू इच्छकारि तुम्हे अम्हपंच महत्वयाई राइभोयणवेरमण छट्ठाई आरोवावणिया ॥