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(१२)चारोंनिक्षेपेअरिहंत बंदनीक हैं इसबाबत।
बारवें प्रश्न की आदि में मूढमति जेठमलने अरिहंत आचार्य और धर्म के ऊपर चार निक्षेपे उतारे हैं सो बिलकुल झूठे हैं,इस तरह शास्त्रों में किसी जगह भी नहीं उतारे हैं।
और नाम अरिहंतकी बाबत ऋषभोशांतो नेमोवीरो” इत्यादि नाम लिख कर जेठे ने श्रीवीतराग भगवंत की महा अवज्ञा करी है सो उसकी महा मूढ़ताकी निशानी है और इसी वास्ते हमने उसको मदमति का उपनाम दिया है ।।
. जेठमल ने लिखा है, कि "केवल भाव निक्षेपा ही बंदनीक है अन्य तीन निक्षेपे बंदनीक नहीं हैं परंतु यह उसका लिखना सिद्धांतों से विपरीत है,क्योंकि सिद्धांतों में चारों निक्षेपे बंदनीक
जेठे निन्हवने लिखा है कि "तीर्थंकरोंके जो नाम हैं सो नाम । संज्ञा है नाम निक्षेपा नहीं,नाम निक्षेपा तो तीर्थंकरोंके नाम जिस अन्य वस्तु में होवे सो है" इस लेख से यही निश्चय होता है कि जेठे अज्ञानीको जैनशास्त्रोंकाकिंचितमात्रभी बोध नहीं था,क्योंकि श्रीअनुयोगद्वार सूत्र में कहा है, यतः:_जत्थ य ज जाणज्जा, निक्खेवं निक्खिवे निरवसेसं। जत्थविय न जाणेज्जा, चउक्कयं निक्खिवे तत्थ ॥६॥
अर्थ-जहां जिस वस्तुमें जितने निक्षेपे जाने वहां उस वस्तु में उतने निक्षेपे करे, और जिस वस्तुमें अधिक निक्षेप नहीं जान