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( १ ) ऐसे लिखा है" उत्तर-जेठमलका यह लिखना मिथ्या है। क्योंकि आचारांगकी चूर्णिमें ऐसा लेख नहीं है ॥
( ५९ से ७९.पर्यत ) इक्कीस बोल जेठमलने निशीथचूर्णिका नाम लेकर लिखे हैं वो सर्व वोल मिथ्या है, क्योंकि जेठमलके लिखे मूजिव निशीथचूर्णिमें नहीं हैं ।।
(८०) श्रीआवश्यकसूत्रके भाष्यमें श्रीमहावीरस्वामीके २७ भव कहे तिनमें मनुष्यसे कालकरके चक्रवर्ती हुए ऐसे कहा हैं' उत्तर-मनुष्य कालकरके चक्रवर्ती न होवे ऐसा शास्त्रका कथन है तथापि प्रभु हुए इससे ऐसे समझनाकि जिनवाणी अनेकांत है, इसवास्ते जिनमार्गमें एकांत खींचना सो मिथ्यादृष्टिका काम है।
और ढूंढियोंके माने वत्तीससूत्रोमें तो वीरभगवंतके २७ भवों का वर्णन ही नहीं है तो फेर जेठमलको इसबातके लिखनेका क्या प्रयोजन था ?
(८१) सिद्धांतमें अरिष्टनेमिके अठारां गणधर कहे और भाष्य में ग्यारह कहे सो मतांतर है ।
(८२) सूत्र में पार्श्वनाथके (२८) गणधर कहे और नियुक्तिमें (१०) कहे ऐसे जेठमलने लिखा है, परंतु किसीभी सूत्र या नियुक्ति प्रमुखमें श्रीपार्श्वनाथके (२८) गणधर नहीं कहे हैं, इसवास्ते जेठमलने कोरी गप्प ठोकी है ॥
(८३) “गृहस्थपणेमें रहे तीर्थंकरको साधु वंदना करे सो सूत्र । विरुद्ध है"उत्तर-जबतक तीर्थकर गृहस्थपणेमें होवे तबतक साधुका उनके साथ मिलाप होताही नहीं है ऐसी अनादि स्थिति है। परंत साधु द्रव्य तीर्थंकरको वंदना करे यह तो सत्य है। जैसे श्रीऋषभ देवके साधु चउविसथ्था (लोगस्त) कहते हुए श्रीमहावीर पर्यंतको
भाजन था?