Book Title: Samyaktva Shalyoddhara
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 213
________________ इस प्रश्नोत्तरके अंतमें कितनेक अनुचित वचन लिखके जेठे ने गुरुमहाराजकी आशातना करी है, सो उसने संसार समुद्रमें हलनेका एक अधिक साधन पैदा कस है बारमें प्रश्नोत्तरमें इस वावत विशेष खुलासा करके स्थापना निक्षेपा वंदनीक-सिद्ध करा है इसवास्ते यहां अधिक नहीं लिखते हैं ॥ इति ॥ (३०) शासनके प्रत्यनीकको शिक्षा देनी इसबाबत ! .. तीसमें प्रश्नोत्तरमें जेठमलने लिखा है कि “धर्म अपराधीको मारनेसे लाभ है ऐसा जैनधर्मी कहते हैं"जेठेका यह लेख मिथ्या है। क्योंकि जैनमतके किसीभी शास्त्रमें ऐसे नहीं लिखा है कि धर्म अपराधीको मारनेसे लाभ है। परंतु जैनशास्त्रमें ऐसेतो लिखा है कि जो दुष्टपुरुष जिनशासनका उच्छेद करनेवास्ते, जिनप्रतिमा तथा जिनमंदिरके खंडन करने वास्ते मुनिमहाराजके घात करने वास्ते तथा साध्वीके शील भंग करनेवास्ते उद्यत होवे, उस 'अनु. चित काम करने वालेको प्रथम तो साधु उपदेश देकर शांत करे जेकरवों पुरुष लोभी होवे तो उसको श्रावकजनधन देकर हटावे,जब किसी तरहभी न माने तो जिस तरह उसका निवारण होवे उसी तरह करें। जो कहा है श्रीवीरजिनहस्तदीक्षित धर्म दासगणिकृत ग्रंथम-तथाहिसाहूण चेइयाणय पडिणीय तह अवरणवायं च जिण पक्यणस्स अहियं सम्वध्यामेण वारे २४१

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