Book Title: Samyaktva Shalyoddhara
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 259
________________ ( २६५ ) वाईस अभक्ष्यमें एकेंद्रि, बेइंद्रि तेइंद्रि और निगोंदिये जीवोंकी उत्पत्तिकही है तोभी ढूंढीये इनको भक्षण करते हैं। - (१२) ढूंढीये अपने शरीरसे अथवा वस्त्रमेंसे निकली जूओंको अपने पहने हुए वस्त्रमेही रखते हैं जिनका नाश शरीरकी दाबसे प्रायःतत्कालही होजाता है यहभी दयाका प्रत्यक्ष नमूनाहै!! (१३) ढूंढीये साधु साध्वी सदा मुंहके मुखपाटीबांधीरखते हैं उसमें वारंवार बोलनेसे थूकके स्पर्शसे सन्मूर्छिम जीवकी उत्पत्ति होती है और निगोदिये जीवोंकी उत्पत्ति भी शास्त्रकारोंने कही है निर्विवेकी ढूंढीये इसवातको समझते हैं तोभी अपनी विपरीत रूढिका त्यागनहीं करते हैं इससे वे सन्मूर्छिम जीवकीहिंसा करने वाले निश्चय होते है॥.. (१४) कितनेक ढूंढीये जंगल जाते हैं तव अशुचिको राखमें मिला देते हैं जिसमें चूर्णिये जीवोंकी हिंसा करते हैं ऐसे जाननेमें आया है यही इनके दया धर्मकी प्रशंसाके कारण मालूम होते हैं! ... - (१५) ढूंढीये जब गौचरी जाते हैं तब कितनीक जगह के श्रावक उनको चौकसे दूर खड़े रखते हैं मालूम होताहै कि चौकमें आनसे वे लोक भ्रष्ट होना मानते होंगे,*.दूर खड़ा होकर रिखर्जा • सुझते हो ? ऐसे पूछकर जो देवे सो ले लेता है इससे मालूम हो ___ है कि ढूंढीये असूझता आहार ले आते हैं . . . - बेशक उन मतों की की बिलकन्त नादानी मालूम होती है जो इन को पपने चौके 'में पाने देते हैं क्योकि प्रथम तो इन टूटीरों में प्रायः जाति भातिका कुछ भी पररेज नही है, नाई, कुम्हार, छोये, झीवर वगैरह परेक जातिको साधु बना लेते हैं, दूसरे रापि पानी न होमेसे गुदा न धोते हो तो अशुचि ! .....

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