Book Title: Samyaktva Shalyoddhara
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmanand Jain Sabha
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((२८७ :) ..: . . ढूंढक पचविशी। श्रीजिनप्रतिमा स्युं नहीं रंग,तेनो कवु न कीजें संग; ए आंकणी. .. सरस्वती देवी प्रणभी कहेस्युं,जिनप्रतिमा अधिकार; नवी माने तस वदन चपेटा, माने तस शणगार । श्री जिन. १ केवल नाणी नहिं.चउनाणी, एणे समे भरत मोझार; जिनप्रतिमा जिन प्रवचन जिननो, ए मोटो आधार । श्री जिन० २१ एणे मुढे जिनप्रतिमा उथापी, कुमति हैया फुट; ते बिना किरिया हाथ न लागे; ते तो थोथा कुट । श्री जिन० ३१ जिनप्रतिमा दर्शनथी देसण, लहीये व्रत- मूल; तेहीज मूलकारण उथापे, शुं थयु ए जगशूल । श्री जिन० ४ । अभयकुमारे मुकी प्रतिमा, देखी आर्द्रकुमार; प्रति बुझ्या संजम लइ सीध्या,ते साचो अधिकार । श्रीजिन०५ प्रतिमा आकारे मच्छ निहाली, अवर मच्छ सवी बुझेसमकित पामे जाति स्मरणी, तस परवभव सूझे । श्री जिन०६। छठे अंगे ज्ञाता सूत्रे द्रौपदिए जिन पूज्या; एवा अक्षर देखे तोपिण,मूढमति नवी बुझ्या। श्री जिन० ७।चारणमुनिए चेत्यज वांद्या,भगवति अंगे रंगे, मरड़ी अर्थ करे तेणे स्थानक,कुमतितणे प्रसंगे। श्रीजिन०८१भगवतिअंगे श्रीगणधरजी, ब्राह्मीलिपि वंदे;एवा अक्षर देखे तोपिण,कुमति कहो केम निंदे । श्री जिन० ९१ चैत्य विना अन्यतीर्थी मुजने, वंदन पूजा निषेधे; सातमें अगे शाह आणंदे, समकित कीधु शुद्धे । श्रीजिनक १० सुर्याभदेवे वीरजिन आगल, नाटक की रंगे; समकितद्रष्टी तेह वखाणे, रायपशेणी उपांगे। श्री जिन० ११ समकितद्रष्टी श्रावकनी करणी, जिनवर बींव भरावे; ते तो बारमे देवलोक पहोंचे महानिसीथे लावे । श्री जिन० १२॥ अष्टादगिरि उपरभरते,मणी

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