Book Title: Samyaktva Shalyoddhara
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 264
________________ अथ सुमतिप्रकाश बारहमास। .. कुंडलीछंद-आदि ऋषभजिन देव थी महावीर अरिहंत । जिनशासन चौवीस जिन पूजो वार अनंत । पूजो वार अनंत संत भव भव सुखकारी।संकट बंधन टूट गए निर्मल समधारी। जिन पडिमा जिन सारषी श्रावकवतनुसाध,महावीर चौवीसमें ऋषभदेवजीआद - सवैया तेतीसा-चैत चित नु सुधार प्रभु पूजा का विचार समकितका आचार वीतरागजो वखानी है। लखस्तरकी सार ठाम ठामअधिकार वस्तु सतरां प्रकार अष्टद्रव्यसे सुजानी है। देख सूतर उवाइ पाठ अंबड बताई पूजा ऐसी करो भाई ये तो मोक्ष की निशानी है । जेडे. कुमति हैं धीठ प्रभु मुखड़ा ना दीठ फिरें बसते अतीत मारे कुगुरु अज्ञानी है । १ । ___ कुंडलीछंद-कारण विन कारज नहीं कारण कारज दोइ,कारण तज कारज करे मूल गवावे सोइ, मूल गवावे सोई नहीं आवश्यक जाने,खूला फूलों पूज प्रभु ये पाठ बखाने,जो कुमतिनर धीठ मुखों नहीं पाठ उच्चारण, सो रुलंदे संसार करे कारज विन कारण ॥' ___ सवैया-वैसाख विसरो ना भाई प्रीतपूजाकी बनाई पूजा मोक्ष की सगाई सब सूत्रकी सेली हैं,चंबा मोतिया रवेली कुंगु चंदन घसे ली प्रभु पूजो मनमेली पूजा मोक्षकी सहेली है,वीतरागजो वखानी प्राणी भव्य मन मानी वाणी सूतरमें ठानी पूजे धन सो हथेली है,जैसे मेघमें पपीया पिया पिया बोले जीया छप्पे किरले खुड्डिया पूजा दुष्ट'नुं दुहेली है।।

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