Book Title: Samyaktva Shalyoddhara
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 258
________________ (२२) (९) विदल अर्थात कच्चीछास, कच्चादूध, तथा कच्चीदही में कठोल *खाते हैं, जिसको शास्त्रकारले अभक्ष्य कहा है और उसमें बेइंद्रि जीवकी उत्पत्ति कही है । ढूंढकोंको तो विदलका स्वाद अधिक आताहै क्योंकि कितनेक तो फकत मुफतकी खीचड़ी और छास वगैरह खानेके लोभसेही प्रायः ऋषजी बनते हैं,परंतु इससे 'अपने महाव्रतोंका भंग होता है उसका विचार नहीं करते हैं। (१०) पूर्वोक्त बोलोंमें दर्शाये मुजिब ढूंढीये वेइंद्रि जीवोंका 'भक्षण करते हैं देखीये इनके दयाधर्म की खूबी! . . (११) सूत्रों में बाईस अभक्ष्य खाने वर्जे हैं तो भी ढूंढियेसाधु तथा श्रावक प्रायः सर्व खाते हैं श्रीअंगचूलिया सूत्रके मूलपाठमें कहा है यतः एवं खलु जंबु महाणुभावहिं रिवरेहिं मिच्छत्तकुलाओ उस्सग्गोववाएणं पडिबोहिउण जिणमए ठाविया बत्तीस अणंतकाय भक्खणाओ वारिया महु मज्ज मंसाईबावीस 'अभक्खणाओ णिसेहिया ॥ . . - अर्थ-ऐसे निश्चय हे जंबु ! महानुभाव प्रधानाचार्योंने मिथ्यात्वीयों के कुलसे उत्सपिवाद करके प्रतिबोधके जिनमतमें स्थापन करे, बतीस अनंतकाय खानेसे हटाये, और सहत, शराब मांस वगैरह बाईस अभक्ष्य खानेका निषेध किया, शास्त्रकारोंने * जिस अनाजके दो फोड होजावें और जिसके पीडनेसे तेन्त न निकाले, ऐसा को कठोल; माह, मुगी, मोठ, चने, परवें,मैथे, मसर, हरर प्रादि मिस्सा अनाज, उसको विदल' संचाहै। . . . . ..

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