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( २ ) " (३) कुम्हार के घर से मिट्टी सहित पाणी लाकर पीते हैं जिसमें मिट्टी भी सचित्त और पाणी भी सचित्त होनेसे अचित्त तो क्या होना है परंतु जेकर अधिक समय जैसेका वैसा पड़ा रहे तो उसमें वेइंद्रि जीवकी उत्पत्ति होने का संभव है।
(१) पाथीयां थापनेका पाणी लाकर पीते हैं जोकि अचित्त तो नहीं होता है परंतु उसमें बेइंद्रि जीवकी उत्पत्ति हुई दृष्टि गोचर होती है। __ (५) स्त्रियोंके कंचुकी (चोली) वगैरह कपड़ोंका धोवण लाकर पीते हैं जिसमें प्रायः जूवां अथवा मरी हुई जूबांके कलेवर होने का संभव है ऐसा पाणी पीनेसे ही कई रिखों को जलोदर होने का समाचार सुणने में आया है। *
(६) पूर्वोक्त पाणीमें फकत एकेंद्रि का ही भक्षण नहीं है,परंतु बेइंद्रिका भी भक्षण है क्योंकि ऐसे पाणी में प्रायः पूरे निकलते हैं तथापि ढूंढियोंको इस वातका कुछभी विचार नहीं है । देखोइनका दया धर्म !!!
(७) गत दिनकी अथवा रात्रिकीरखी अर्थात वासी,रोटी,दाल, खीचड़ी वगैरह लाते हैं और खाते हैं। शास्त्रकारोंने उसमें बेइंद्रि जीवोंकी उत्पत्ति कही है।
(८) मर्यादा उपरांतका सड़ा हुआ आचार लाकर खाते हैं, उसमें भी बेइंद्रि जीवोंकी उत्पत्ति कही है।
'झूठे वर्तनों का धोव'प,अन्तवार्ड की कडायोंका पाणी जिसमेसे कई दफा कुत्ते भी पीनाते हैं जिसमें मरी हुई ममिया भी होती हैं,मुना के कुंडों का पाणी जिसमें गहने पादि धोये नाते प्रतारो के परकनिकालने का पानी इत्यादि अनेक प्रकारका गदा पापी भी लेते। ___ अठवर्तनों के धोषण में अन्नादिकी लाग होने से तथा बाटी पादिके पापी में पायपादिके मैल पादि पशुधि होनेसे सन्मूर्छिम पंचेंद्रि की भी खूब दया पतती है।