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उज्जमाणिं वा गिरहमाणे अवलंबमाणे णातिक्कमति ॥
अर्थ-काठाचीकड़,पतला चीकड़ पंचवरणी फूलन और पाणी इनमें साध्वी खूच जावे, अथवा पाणीमें बही जाती होवे, उसको साधु काढ लेवे तो भगवंतकी आज्ञा न अतिक्रमें ॥ . इस पाठमें भगवंतने हिंसाकी आज्ञा क्यों दी? .
(३) ढूंढिये भी धर्मानुष्ठानकी क्रिया करते हैं, मघ वर्षतेमें स्थंडिल जाते हैं, शिष्योंके केशोंका लौच करते हैं, आहार विहार निहारादिक कार्य करते हैं, इन सर्व कार्यों में जीव विराधना होती है, और इनसर्व कार्यों में भगवंतने आज्ञा दी है। परंतु जेठा तथा अन्य इंढियों को आज्ञा, अनाज्ञा, दया, हिंसा, धर्म, अधर्मकी कुछ भी खबर नहीं है; फकत मुखसे दया दया पुकारनी जानते हैं, इस वास्ते हम पूछते हैं कि पूर्वोक्त कार्य जिनमें हिंसाहोने का संभव है ढूंढिये क्यों करते हैं ? . . . .
(2) धर्मरुचि अणगारने जिनाज्ञामें धर्म जानके और निर-, वद्य स्थंडिल का अभाव देखके कड़वे सूबे का आहार किया है, इस बाबत जेठेने जो लिखा है सो मिथ्या है, धर्मरुचि अणगारने तो उस कार्यके करनेसे तीर्थंकर भगवंतकी तथा गुरुमहाराजकी आज्ञा आराधी है, और इससेही सर्वार्थसिद्ध विमानमें गयाहे ॥
(५) श्रीआचारांगसत्रके पांचमें अध्ययनमें कहा है ॥ यतःअणाणाए एगे सोवठ्ठाणे आणाए एगे निरुवहाणे एवं ते मा होउ ॥ . .