Book Title: Samyaktva Shalyoddhara
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 254
________________ (२ ) करे (वें तीन स्थान कहते हैं) कब मैं अल्प (थोड़ा) और बहुत श्रृंत सिद्धांतपढूंगा? १, कब मैं एकल्लविहारी प्रतिमा अगीकार करके विचरूंगा?२,और कब मैं अंतिममारणांतिक संलेषणा जोतप उस कासेवन करके रुक्षहोकरभातपाणीका पञ्चक्खाण करके पादोपगमअनशन करके मृत्युकी वांच्छा नहीं करताहुआ विचरूंगा?- ३,इस. तरह साधु मन वचन काया तीनों करण करके. प्रतिजागरण करता हुआ महा निर्जरा पर्यवसान करे॥ अब श्रावक के तीन मनोरथों का पाठ कहते हैं। तिहिं ठाणेहिं समणोवासए महाणिज्जरे महापज्जवसाणे भवई तंजहा कयाणं अहं अप्पंवा बहुंवा परिग्गहं चइस्सामि कयाणं अहं मुंडेभवित्ता आगाराओ अणगारियं पव्व इस्सामि कयाणं अहं अपच्छिममारणंतियं संलहणा झसिय भत्तपाणपडिया इक्खिए पाओवगमं कालमण वक्कंखेमाणे विहरिस्सा मि एवं समणसा सवयसा सकायसा पडिजागर माण समनोवासए महाणिज्जरे महापज्जव साणे भवई ॥ ... अर्थ-तीन स्थान के श्रावक महा निर्जरामहा पर्यवसान करें तद्यथा कब मैं धन धान्यादिक नव प्रकार का परिग्रह थोड़ा और बहुता.त्यागन करूगा? १, कब में मुंड होकर आगार जो गृहवास

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