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(३)प्रवचनके प्रत्यनीकको शिक्षा करने बाबत
"जैनधर्मी कहते हैं कि प्रवचनके प्रत्यनीकको हननमें दोषनहीं" ऐसा ३९में प्रश्नोत्तरमें मूढमति जेठेने लिखाहै, परंतु हम इस तरह एकांत नहीं कहते हैं इसवास्ते जेठेका लिखना मिथ्या है, जैनशास्त्रों में उत्सर्गमार्गमें तो किसीजीवको हनना नहीं ऐसे कहा है, और अपवाद मार्गमें द्रव्य,क्षेत्र, काल, भाव देखके महालन्धिवंत विश्नुकुमारकातरह शिक्षाभी करनी पड़जाती है क्योंकि जैन शास्त्रोंमें जिनशासन के उच्छेद करनेवालेको शिक्षा देनी लिखी है श्रीदशाश्रुतस्कंध सूत्रके चौथेउद्देश में कहा है कि "अवण्णवाइणं पडिहणित्ता भवइ" जब ढूंढिये प्रवचनके प्रत्यनीकको भी शिक्षा नहीं करनी ऐसा कहकर दयावान् बनना चाहते हैं तो ढूंढिये साधु रेच(जुलाब)लेकरहजारांकृमियोंको अपने शरीरके सुखवास्ते मारदेते हैं तो उस वक्त दया कहां चली जाती है ?
जेठने श्री निशीथचूर्णिका तीन सिंहके मरनेका अधिकार लिखा है परंतु उस मुनिने सिंहको मारने के भावसे लाठी नहीं मारी थी, उसने तो सिंहको हटाने वास्ते यष्ठिप्रहार कियाथा, इसतरह करते हुए यदि सिंह मरगये तो उसमें मुनि क्या करे ? और गरुमहाराजानेभी सिंहको जानसे मारनेका नहीं कहाथा, उन्होंने कहा था कि जो सहजमें न हटे तो लाठी से हटादेना; इसतरह चूर्णिमें खुलासा कथन है तथापि जेठे सरीखे ढूंढिये कुयुक्तियां करके तथा झठे लेख लिखके सत्यधर्मकी निंदा करते हैं सो उनकी मुर्खता है । , इसकी पुष्टि वास्ते जेठेने,गोशालेके दो साधु जालनेका दृष्टांत लिखा है, परंत सो मिलता नहीं है, क्योंकि उन मुनियोंने तो काल