Book Title: Samyaktva Shalyoddhara
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 236
________________ ( २० ) किया था, और पूर्वोक्त दृष्टांत में ऐसे नहीं था, तथा पर्वो दृष्टांत में साधुने गुरुमहाराजाकी आज्ञासे यष्ठिप्रहार किया है, और गोशालेकी बाबत प्रभुने आज्ञा नहीं दी है, इसवास्ते गोशा लेके शिक्षा करनेका दृष्टांत पूर्वोक्त दृष्टांत के साथ नहीं मिलता है | फिर जेठेने गजसुकमालका दृष्टांत दिया है परंतु जब गजसुकुमाल काल कर गयातोपीछे उसने उपसर्ग करने वालेका निवारणही क्या करना था ? अगर कृष्ण महाराजाको पहले मालूम होताकि सोमिल इसतरह उपसर्ग करेगा तो जरूर उसका निवारण करता, तथा गजसुकुमाल के काल करने पीछे कृष्णजीके हृदयमें उसको शिक्षा करनेका भाव था, परंतु उपसर्ग करने वाले को तो स्वयमेव शिक्षाहो चुकी थी, क्योंकि उस सोमिलने कृष्णजीको देखतेही काल करा है, तो भी देखो कि कृष्णजीने उसके मृतक (मुरदे ) को जमीन ऊपर घसीटा है, और उसकी बहुत निंदा करी हैं और उस मृतक को जितनी भूमिपर घसीटा उतनी जमीन उस महादुष्ट के स्पर्शसे अशुद्ध होई मानके उसपर पाणी छिडकाया है ऐसा श्रीअंतगडदशांग सूत्र में कहा है, इसवास्ते विचार करोकि मृत्यु हुए बाद भी इस तरहकी विटंबना करी है तो जीता होता तो कृष्णजी उसकी कितनी विटंबना करते ! इसवास्ते प्रवचन के प्रत्यनीकको शिक्षा करनी शास्त्रोक्तरीतिसे सिद्ध हैं विशेष करके तीसमें प्रश्नोत्तर में लिखा है | ॥ इति ॥ (४०) देवगुरुकी यथायोग्य भक्ति करने बाबत चालीसवें प्रश्नोत्तर में जेठा लिखता है कि " जैनधर्मी गुरु महाव्रती और देव अत्रती, मानते हैं" उत्तर - यह लेख लिखके

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