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(26 ) वताके शिष्यपणो धारण करते हैं, इसवास्ते हमारी बाततो प्रत्यक्ष सत्य है; परंतु ढूंढकमती जिनाज्ञा रहित नवीन पंथके निकालनेसे गोशाले सदृश सिद्ध होते हैं।
(८) आठमें बोलमें जेठा लिखता है कि "गोशालेने मरने समय कहा कि मेरा मरणोत्सव करीयो और मुझे शिबिकामें रखकर निकालियो, इसीतरह जैनमुनि भी कहते हैं" उत्तर-जेठेका यह लिखना बिलकुल झूठ है, क्योंकि जैनमुनि ऐसा कभी भी नहीं कहते हैं; परंतु ढूंढियेसाधु मर जाते हैं तब इसतरह करनेका कह जाते होंगे कि मेरा विमान बनाके मुझे निकालीयो,पांच इंडे रखीयो इसवास्तेही जेठे आदि ढूंढियोंको इसतरह लिखनेका याद आगया होगा ऐसे मालूम होता है, इंद्रने जिस तरह प्रभुका निर्वाण महो त्सव करा है जैनमति श्रावक तो उसीतरह अपने गुरुकी भक्तिके निमित्त स्वेच्छासे यथाशक्ति निर्वाणमहोत्सव करते हैं ।
(९) नवमें बोलमें स्थापना असत्य ठहराने वास्ते जेठेने कु. युक्ति लिखी है, परंतु श्रीठाणांगसूत्र वगैरहमें स्थापना सत्य कही है । तोभी सूत्रोंके कथनको ढूंढिये उत्थापते हैं इसलिये वह गोशालेमती समान हैं ऐसे मालूम होता है ॥
(१०) दशमें बोलमें जेठा लिखता है कि "क्रिया करने से मुक्ति नहीं मिलती है, भवस्थिति पकेगी तब मुक्ति मिलेगी, ऐसे जैनधर्मी कहते हैं” यह लेख मिथ्या है, क्योंकि जैनमुनि इसतरह नहीं कहते है । जैनमुनियोंका कहना तो जैनसिद्धांतानुसार यह है कि ज्ञान सहित क्रिया करनेसे मोक्ष प्राप्त होता है, एरनु जो एकांत खोटी क्रियासही मोक्षमानते हैं वो जैनसिद्धांतकी स्याद्वाद