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(२५ ) परंतु जिनाज्ञा युक्त जो दया है उसमें ही धर्महै, ऐसा शास्त्रकार लिखते हैं ।
जेठा लिखता है कि "दयामें ही धर्म है, और भगवंतकी आज्ञा भी दयामें ही है, हिंसामें नहीं" उत्तर-जेकर एकांत दयाही में धर्म है तो कितनेक अभव्यजीव अनंतीवार तीनकरण तीनयोग से दया पालके इकीसमें देवलोक तक उत्पन्न हुए परंतु मिथ्या दृष्टि क्यों रहे? और जमालिने शुद्ध रीति दयापाला तोभी निन्हव क्यों कहाया? और संसारमें पर्यटन क्यों किया? इसवास्ते ढूंढियो ! समझो कि अभव्य तथा निन्हवोंने दया तो पूरी पाली परंतु भगवंतकी आज्ञा नहीं आराधी इससे उनकी अनंतसंसार रुलने की गति हुई इसवास्ते आज्ञाहीमें धर्म है ऐसे समझना ।
(१) जेकर भगवंतकी आज्ञा दयाहीमें है तो श्रीआचारांग सूत्रके द्वितीय श्रुतस्कंधके ईर्याध्ययनमें लिखा है कि साधु ग्रामानुग्राम विहार करता रस्तेमें नदी आजाये तब एक पग जलमें और एक पग थल में करता हुआ उतरे सो पाठ यह है :
"भिक्ख गामाणगामं दृइज्जमाणे अंतरा से नई आगच्छेज्ज एगं पायं जले किच्चा एगं पायं थले किच्चा एवएहं संतर"]
यहां भगवंतने हिंसा करनेकी आज्ञा क्यों दीनी ?
(२) श्रीठाणांगसूत्रमें पांचमें ठाणे में कहा है । यतःणिग्गंथे णिग्गंथिं सेयंसिवा पंकसिवा पणगंसिवा उदगंसिवा उक्कस्समाणिं वा