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क्योंकि जिनप्रतिमा जिनवर तुल्य है, तथा प्रतिमाद्वारा तीर्थकर भगवंतकी ही पूजा होतीहै। इस तरह जिनप्रतिमाकीभक्ति करने से फलप्राप्तिकदृष्टांतसूत्रोंमें बहुतहैं,जिनमेंसे कितनेक यहां लिखतह? . (१) श्रीजिनप्रतिमाकी भक्तिसे श्रीशांतिनाथ जी के जीवने तीर्थकर गोत्र बांधा, यह कथन प्रथमानुयोगमें है.॥ .. ..
(२) श्रीजिनप्रतिमाकी पूजा करनेसे सम्यक्त्व शुद्धहोती है, यह कथन श्रीआचारांग की नियुक्ति में है।
(३) “थय थूइय मंगल" अर्थात् स्थापनाकी स्तुति करने से जीव सुलभबोधी होता है । यह कथन श्रीउत्तराध्ययनसूत्रमें है।
(४) जिनभक्ति करनेसे जीव तीर्थकरगोत्र बांधता है। यह कथन श्रीज्ञातासूत्र में हैं। जिनप्रतिमाका जो पूजा है सो तीर्थकरकी ही है, और इससे वीस स्थानकमें से प्रथमस्थानकी आराधना होती है ।
(५) तीर्थकरके नाम गोत्रके सुनने का महाफल है ऐसे श्री भगवती सत्रमें कहा है,और प्रतिमामें तो नाम और स्थापना दोनों हैं। इसवास्ते तिसके दर्शनसे तथा पूजासे अत्यंत फल है ॥ .
(६) जिनप्रतिमाकी पूजासे संसारका क्षय होता है,ऐसे श्री आवश्यकसूत्रमें कहा है ॥
(७) सर्व लोकमें जो अरिहंतकी प्रतिमाह तिनका कायोत्सर्ग बोधिबीजके लाभ वास्ते साधु तथा श्रावक करे, ऐसे श्रीआवश्यक सूत्र में कहा है॥
(८) जिनप्रतिमाके पूजनेसे मोक्ष फलकी प्राप्ति होती है, ऐसे श्रीरायपसेणीसूत्र में कहा है ॥
(९) जिनमंदिर बनवाने वाला बारमें देवलोक तक जावे, ऐसे श्रीमहानिशीथ सूत्रमें कहा है ॥ .