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( २५१) द्रव्यनिक्षेपे वंदना करते थे। तथा हालमें भी लोगस्स कहते हुए उसी तरह द्रव्य जिनको वंदना होती है । *
(८४-८५) "श्रीसंथारापयन्नामें तथा .चंद्रविजयपयन्नामें एवंती सुकुमालका नाम है और एवंती सुकुमाल तो पांचों आरेमें हुआ है इसवास्ते वो पयन्ने चौथे आरके नहीं" उत्तर-श्रीठाणांग सूत्र तथा नंदिसूत्रमें भी पांचों आरके जीवोंका कथन है तो यह सूत्रभी चौथे आरेके बने नहीं मानने चाहिये ॥
ऊपर भूजिब जेठमल ढूंढकके लिखे(८५)प्रश्नोंके उत्तर हमने शास्त्रानुसार यथास्थित लिखे हैं, और इससे सर्व सूत्र, पंचांगी ग्रंथ,प्रकरण प्रमुख मान्य करने योग्य हैं ऐसे सिद्ध होता है। क्योंकि समदृष्टिकरके देखनेसे इनमें परस्पर कुछ भी विरोध मालूम नहीं होता है,परंतु जेकर जेठमल प्रमुख ढूंढिये शास्त्रों में परस्पर अपेक्षा पूर्वक विरोध होनेसे मानने लायक नहीं गिनते हैं तो तिनके माने वत्तीससूत्र जोकि गणधर महाराजाने आप गूथे हैं ऐसे वो कहते हैं, उनमें भी परस्पर कितनाक विरोध है । जिसमें से कितनेक प्रश्नों के तौरपर लिखते हैं।
(१) श्रीसमवायांगसूत्र में श्रीमल्लिनाथजीके (५९००) अवधि ज्ञानी कहे हैं, और श्रीज्ञातासूत्रमें (२०००) कहे हैं यह किस तरह?
(२) श्रीज्ञातासूत्रके पांचमें अध्ययनमें कृष्णकी (३२०००) स्त्रियां कही हैं,और अंतगडदशांगके प्रथमाध्ययनमें (१६०००) कही हैं यह कैसे ?
*पगामसझाय (साधुप्रतिक्रमण) में भी द्रव्यजिनको वदना होती है। . . "नमो चउवीसाए तिथ्थयराणं उसभाइ महावीर पज्जवसाणाण"
इतिवचनात् ॥
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