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( २३२. ) . प्रणामले निर्जरा होती है, और देखने में संवरका कारण है परंतु अशुद्ध प्रणामसे कर्मका बंधन होता है।
तथा सम्यग्दृष्टि श्रावकोंने पुण्य प्राप्तिके निमित्त कितनेक कार्य करे हैं, जिनमें स्वरूप हिंसा है परंतु अनुबंधे दया है, और उनको फल भी दयाका ही प्राप्त हुआ है, ऐसे अधिकार सत्रोंमें बहुत हैं जिनमें से कुछक अधिकार लिखते हैं।
(१) श्रीज्ञातासूत्रनें कहा है कि सुबुद्धि प्रधानने राजाके समझाने वास्ते गंदी खाइका पाणी शुद्ध करा॥
(२) श्रीमल्लिनाथजीने ६ राजाके प्रतिबोधनेवास्ते मोहनघर कराया ॥
(३) उन्होंने ही ६ राजाओंका अपने ऊपरका मोह हटानेवास्ते अपने स्वरूप जैसी पूतली में प्रतिदिन आहारके ग्रास गेर जिससे उनमें हजारों त्रस जीवोंकी उत्पत्ति और विनाश हुआ॥
(४) उववाइसूत्रमें कोणिक राजाने भगवान्की भक्ति वास्ते बहुत आडंबर करा॥
(५) कोणिकराजाने रोज भगवंतकी खवर मंगवानेवास्ते आदमियोंकी डाक बांधी ॥
(६) प्रदेशी राजाने दानशाला मंडाइ जिसमें कई प्रकारका आरंभ था, परंतु केशीकुमारने उसका निषेध नहीं करा, किंतु कहा कि राजन् ! पूर्व मनोज्ञ होके अब अमनोज्ञ नहीं होना ॥
(७) प्रदेशीराजाने केशीगणधरको कहा कि हे स्वामिन् ! कल को मैं समय अपनी ऋद्धि और आडंबरके साथ आकर आपको वंदनाकरुंगा,और वैसेही करा,परंतु केशीगणधरने निषेध नहीं करा॥