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( १०६ ) इस ठिकाने विना प्रसंग है, तैसे ही तिस पाठके लिखनेका प्रयोजन भी नहीं है, परंतु फक्त पोथी बड़ी करनी, और हमने बहुत सूत्र पाठ लिखे हैं, ऐसे दिखा के भद्रिक जीवों को अपने फंदे में फंसाना यही मुख्य हेतु मालूम होता है, और उस जगह चैत्यवृक्ष कहे हैं सो ज्ञान की निश्राय नहीं कहे है, किंतु चौतराबंध वृक्ष का नाम ही चैत्यवृक्ष है, और सो हम इसी अधिकार में प्रथम लिखआये हैं । भगवान् जिस वृक्ष नीचे केवल ज्ञान पाये हैं, सो वृक्ष चौतरा सहित थे, और इसी वास्ते उन को चैत्यवृक्ष कहा है, ऐसे समझना, परंतु 'चैत्य शब्द का अर्थ ज्ञान नहीं समझना । तथा तुम ढूंढक बत्तीससूत्रों 'केविना अन्य कोई सूत्र तो मानते नहीं हो तो अर्थ करते होसो किस 'के आधार से करते हो ? सो बताओ, क्योंकि कुल कोषों में प्रायः 'हमारे कहे मूजिब ही चैत्य शब्द का अर्थ कथन किया है, परंतु तुम चैत्य शब्द का अर्थ साधु तथा ज्ञान वगैरह करते हो सो केवल स्वकपोलकल्पित है; और इस से स्पष्ट मालूम होता है कि निः केवल असत्य बोलके तथा असत्य प्ररूपणा करके बिचारे भोले लोगों को अपने कुपंथ में फंसाते हो ॥ इति (१६) आनंद श्रावक ने जिनप्रतिमा वांदी है | सोलवें प्रश्नोत्तर में आनंद श्रावक ने जिनप्रतिमा वांदी नहीं है, ऐसे ठहराने के वास्ते जेठमल ने उपासक दशांग सूत्र का पाठ लिख के तिस का अर्थ फिराया है इस वास्ते सोही सूत्र पाठ सच्चे यथार्थ अर्थ सहित नीचे लिखते हैं, श्रीउपासक दशांग सूत्र प्रथमाध्ययने, यतः
नो खलु मे भंते कप्पइ अज्जप्पभिचणं
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