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मदिरा पीनेवाली, मांस खानेवाली, कुशील सेवने वाली वेश्या के घर में अथवा मांसादि वेचने वाले कसाई के घर में जारहे, तो तुम ढूंढक तिसको जाके वंदना करो कि नहीं? अथवा न्यातमें लेवो के नहीं ? यदि कहोगे कि न वंदना करेंगे और न न्यात में लेंगे तो ऐसे ही जिन प्रतिमा संबंधि समझ लेना ।
फेरजेठमलने लिखा है कि "तुमारे साधु अन्य तीर्थीके मठ में उतरे होवे तो तुमारे गुरु खरे या नहीं? "-उत्तर-अरे, बुद्धि के दुश्मनो! ऐसे दृष्टांत लिखके बिचारे भोले भद्रिक जीवों को फसाने का क्यों करते हो ? अन्यतीर्थों के आश्रम में उतरने से वोह साधु अवंदनीक नहीं हो जाते हैं, क्योंकि वोह स्वेच्छाले वहां उतरे हैं,और स्वेच्छा से ही वहांसे विहार करने हैं,और उनसाधुओं को अन्य दर्शनियों ने अपने गुरु करके नहीं माना है, तैले ही अन्य तीर्थीयों की ग्रहण करी जिनप्रतिमा से जिनप्रतिमा पणा चला नहीं जाता है, परंतु उस स्थान में वोह वंदने पूजने योग्य नहीं है ऐसे समझना॥
पुनः जेठमलने लिखा है कि "द्रव्य लिंगी पासथ्था वेषधारी निन्हव प्रमुख को किस बोल में आनंदने वोसराया है?" उत्तर
साधु दीक्षालेता है तब करोमि भंते' कहता है, और पांच महाव्रत उचरता है तिसको भी पासथ्था, वेषधारी,निन्हव प्रमुखको वंदना नमस्कार करने का त्याग होना चाहिये, सो पांच सहावत लेने समय तिसने तिनका त्याग किल बोलमें किया है सो बताओ ? परंतु अरे अकलके दुश्मनो! सम्यगहष्टि श्रावकों को जिनाज्ञा से वाहिर ऐसे पासथ्थे, वेषधारी,निन्हव प्रमुख को वंदना नमस्कार करने का त्यागतो है ही,इस बाबत पाठमें नहीं कहा तो इसमें क्या