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( v ) जेठमलकी सब कुयुक्तियां झूठी हैं।
तथा इस प्रसंगमें जेठमलने विजय चोर का अधिकार लिख के बताया है कि विजय चोर राजगृही नगरी में प्रवेश करने के मार्ग, निकलने के मार्ग, मद्यपान करने केमकान,वेश्या के मकान, चोरों के ठिकाने,दों तीन तथा चार रास्ते मिलने वाले मकान, नाग देवता के, भूत के तथा यक्ष के मंदिर इतने ठिकाने जानता है ऐसे सत्र में कहा है तो राजगृही में तीर्थंकर के मंदिर होवें तो क्यों न जान"? उत्तर-प्रथम तो यह दृष्टीत ही निरुपयोगी है, परंतु जैसे मूर्ख अपनी मुर्खताई दिखाये विना ना रहे, तैसे जेठमलने भी निरुपयोगी लेखसे अपनी पूर्ण मूर्खताई दिखाई है। क्योंकि यह दृष्टांत बिलकुल तिसके मत को लगता नहीं है ,एक अल्पमतिबाला भी समझ सक्ता है, कि इस अधिकार में चोर के रहने के, छिपनेके, प्रवेश करने के निकलने के, जो जो ठिकाने तथा रस्ते हैं सो सवै विजयचोरं जानताथा ऐसे कहा है। सत्य है क्योंकि ऐसे ठिकानें जानती न होवे तो चोरी करनी मुश्किल हो जावे, सो जैसे सेठ शाहुंकारों की हवेलीया, राज्यमंदिर, हस्तिशाला, अश्वशाला, और पोषधशाला(उपाश्रय) वगैरह नहीं कहे हैं, ऐसे ही जिन मन्दिरभी नहीं कहें हैं क्योंकि ऐसे ठिकाने प्रायःचोरों के रहने लायक नहीं होते हैं। इससे इन के जानने की उसको कोई प्रयोजन नहीं था; परंतु इससे यह नहीं समझना कि उसनगरी में उस समय जिनमदिर, उपाश्रय वगैरह नहीं थे,परंतु इस नगरी में रहने वाले श्रावक हमेशा जिन प्रतिमाकी पूजा करते थे, इसवास्ते बहत जिनमंदिर थे ऐसा सिद्ध होता है।
कोशिक रोजाने भगवत को वंदना करी तिसका प्रमाण