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(२१) जेठा लिखता है कि "सर्याभने धर्म शास्त्र वांचे ऐसे सूत्रोंमें कहा है सो कुलधर्मके शास्त्र समझने क्योंकि जो धर्मशास्त्र होवे तो मिथ्यात्वी और अभव्य क्यों वांचे ? कैसे सद्दहे ? और जिनवचन सच्चे कैसे जाने ?" उत्तर-सुर्याभने वांचे सो पुस्तक धर्मशास्त्र के ही हैं ऐसे सूत्रकारके कथन से निर्णय होता है 'कुल' शब्द जेठेने अपने घरका पाया है सूत्र में नहीं है और लौकिक में भी कुलाचार के पुस्तकों को धर्मशास्त्र नहीं कहते हैं, धर्मशास्त्र वांचने का अधिकार सम्यग्दृष्टि का ही है, क्योंकि सर्व देवता पुवि सेयं किंमे पच्छा सेयं किंमे पुट्विं पच्छावि हियाए सुहाए खमाए णिस्साए अणुगामित्ताए भविस्सइ तएणं तस्स सूरियाभस्स देवस्त सामाणियपरिसोववण्णगा देवा सरियाभस्त देवस्स इमेयारूव मप्भत्थियंजाव समुप्पण्णं समभिजाणित्ताजेणेव सूरियाभे देवतेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता सूरियाभं देवं करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थएअंजलिं कह जएणविजएणंबद्धावेंतिरत्ता एवंवयासी एवंखलु देवाणुप्पियाणं सूरियाभे विमाण सिद्धाययणे असयंजिणपडिमाणं जिणुस्सेह पमाणमेत्ताणं सपिणखित्तं चिठति सभाएणं सुहम्माए माणवए चेइए खंभेवइरामए गोलवदृ समुग्गएबहूओजिण सकहाओ सणिखित्ताओ चिति ताओणं देवाणुप्पियाणं अण्णेसिंच वहणं वेमाणियाणं देवाणय देवीणय अच्चणिज्जाओ जाव वंदणिज्जाओ णमंसणिज्जाओ पूयणिज्जाओ सम्माणणिज्जाओ कल्लाणं मंगलं देवयंचेइयं पज्जुवासणिज्जाओ तं एयणं देवाणप्पियाणं पुव्विं करणिज्ज एयणं देवाणप्पियाणं पच्छाकरणिज्जं एयणं देवाणुप्पियाणं पुब्बिं सेयं एयणं देवणुप्पियाणं पच्छा सेयं एयणं देवाणुप्पियाणं पुविं पच्छावि हियाए सुहाए-खमाए णिस्सेसाए अणुगामित्ताएभविस्सई"