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। उत्तर-वीरभगवान् दीक्षा पर्याय में विचरते थे उस अवसर में तिनको अनेक प्रकार के उपसर्ग हुए तब भगवंतकी भक्ति जानके धर्म निमित्त सौधर्मेंद्रने वारंवार आनके उपसर्ग निवारण किये तैसे अच्युतेंद्र ने क्यों नहीं किये ? क्या वो जिनेश्वर की भक्ति में धर्म नहीं समझते थे ? समझते तो थे तथापि पूर्वोक्त कार्य सौधर्मेंद्रने ही किया है तैसेही भरतादि क्षेत्रके तीर्थंकरों की दाढ़ा चार इंद्र लेते हैं, और महा विदेह के तीर्थंकरों की सर्व लेते हैं इसवास्ते इसमे कुछ भी बाधक नहीं है, जेठमल लिखता है कि "दाढा सदा काल नहीं रहसक्ती हैं इसवास्ते शाश्वते पुद्गल समझने"इसतरह असत्य लेख लिखने में तिस को कुछ भी विचार नहीं हुआ है सो तिसकी मृढता की निशानी है, क्योंकि दाढा सदाकाल रहती हैं ऐसे हम नहीं कहते हैं, परंतु वारंवार तीर्थंकरों के निर्वाण समय दाढ़ा तथा अन्य अस्थि देवता लेते हैं इसवास्ते तिनको दाढ़ाकी पूजा में बिलकुल विरह नही पड़ता है ॥ .
- जेठमल कहता है कि "जमालि तथा मेघ कुमारकी माताने तिनके केश मोहनी कर्म के उदय से लिये हैं, तैसे दाढ़ा लेने में मोहनी कर्म का उदय है" उत्तर
प्रभुकी दाढ़ा देवता लेते हैं सो धर्म बुद्धि से लेते हैं तिसमें तिनको कोई मोहनीकर्म का उदय नहीं है जमालि प्रमुखके केश. लेने वाली तो तिनकी माता थीं तिसमें तिनको तो मोह भी होसक्ता है परंतु इंद्रादि देवते दाढ़ा प्रमुख लेते हैं वे कोई भगवंतके सक्के संबंधी नहीं थे जोकि जमालि प्रमुखकी माताक़ी तरह मोहनी कर्म के उदयसे दाढ़ा लेवे, वे तो प्रभुके सेवक हैं और धर्म बुद्धि से ही प्रभुकी दादा प्रमुख लेते हैं ऐसे स्पष्ट मालूम होता है।