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तथा जेठमल के लिखे मूजिब जब देवर्द्धि गणिक्षमाश्रमण के लिखे शास्त्रोंकी प्रतीति नहीं करनी चाहिये ऐसे सिद्ध होता है तो फिर जेठे निन्हव सरीखे मूर्ख निरक्षर मुहबंधेके कहे की प्रतीति कैसे करनी चाहिये ? इसवास्ते जेठमल का लिखना बेअकल, निर्विवेकी, तो मंजूर कर लेवेंगे, परंतु बुद्धिमान विवेकी और सुज्ञ पुरुषतो कदापि मंजूर नहीं करेंगे ॥
जेठमल लिखता है कि " पूर्वघर धर्मघोषमुनि, अवधिज्ञानी सुमंगल साधु, चारज्ञानी केशीकुमार तथा गौतमस्वामी प्रमुख श्रुत केवली भी भूले हैं" उत्तर- जिन्होंने तीर्थकर की आज्ञा से काम करा जेठा उनकी भी जब भूल बताता है तो तीर्थंकर केवली भी भूल गये होंगे ऐसा सिद्ध होगा ! क्योंकि मृगालोढीयेको देखने वास्ते गौतमस्वामीने भगवंतसे आज्ञा मांगी और भगवंतने आज्ञा दी उस मूजिब करने में जेठमल गौतमस्वामी की भूल हुई कहता है, तो सारे जगत् में मूढ़ और मिथ्यादृष्टि, जेठाही एक सत्यवादी बन गया मालूम होता है; परंतु तिसका लेख देखने से ही सो महादुर्भवी बहुलसंसारी और असत्यवादी था ऐसे सिद्ध होता है, क्योंकि अपने कुमत को स्थापन करने वास्ते उसने तीर्थंकर तथा गणधर महाराजा को भी भूलगए लिखा है इसवास्ते ऐसे मिथ्यादृष्टि का एक भीवचन सत्य मानना सो नरकगति का कारण है ॥
श्रीकालिक सूत्रकी गाथा लिखके तिसका जो भावार्थ जेठमलने लिखा है सो मिथ्या है, क्योंकि उस गाथा में तो ऐसे कहा है कि जेकर दृष्टिवाद का पाठी भी कोई पाठ भूलजावे तो अन्य साधु तिसकी हांसी न करे, यह उपदेश वचन है, परंतु इससे उस गाथा का यह भावार्थ नहीं समझना कि दृष्टिवाद का पाठी