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( e) प्रकारकी है,श्रीभगवती सूत्रके प्रथमशतकके दूसरे उद्देशे में विराधित संयमी उत्कृष्ट सुधर्म देवलोक में जावे ऐसे कहा है और ज्ञाता सूत्रके सोलमें अध्ययन में विराधित संयमी सुकुमालिका ईशान देवलोक में गई ऐसे कहाहै,तथा श्रीउववाइ सूत्रमें तापस उत्कृष्ट ज्योतिषि तक जाते हैं ऐसे कहा है और भगवती सूत्र में तामलि तापस ईशानेंद्र हुआ ऐसे कहा है, इत्यादिक बहुत चर्चा है परंतु ग्रंथ बंध जानेके कारण यहां नहीं लिखी है, जब सूत्रोंमें इस तरह है तो ग्रंथों में होवे इसमें कुछ आश्चर्य नहीं है, सुर्याभने प्रभुको ६ वोल पूछे इससे बारह वोलवाले सुर्याभ विमान में जाते हैं ऐसे जेठ मलने ठहराया है परंतु सो झूठ है,क्योंकि छद्मस्थ जीव अज्ञानता अथवा शंकासे चाहो जैसा प्रश्न करतो तिसमें कोई आश्चर्य नहीं है, तथा “ देवता संबंधी बारह वोलकी पृच्छा सूत्र में है परंतु मनुष्य संबंधी नहीं है इसवास्ते बारह बोलके देवता होते हैं "ऐसे जेठेने सिद्ध किया है तो मनुष्य संबंधी बारह बोलकी पृच्छा न होने से जठेके लिखे मृजिब क्या मनुष्य बारह बालके नहीं होते हैं ? परतु जेठमलने फकत जिनप्रतिमाके उत्थापन करने वास्ते तथा मंदमति जीवों को अपने फंदेमें फंसानेके निमित्तही ऐसी मिथ्या कुयुक्तियां करी हैं।
और देवताकी करणीको जीत आचार ठहराके जेठमल तिस करणी को गिनतीमें से निकाल देता है अर्थात् तिसका कुछभा फल नहीं ऐसे-ठहराता है, परंतु इसमें इतनी भी समझ नहीं; कि इंद्रप्रमुख सम्यग्दृष्टि देवताओं का आचार व्यवहार कैसा है ? वो प्रभुके पांचों कल्याणकों में महोत्सव करते हैं, जिनप्रतिमा और जिनदाढाकी पूजा करते हैं, अठमे नंदीश्वरदीपमें अहाई महोत्सव