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( ५) किसीने कहा लिखा नहीं है। जेठमलने इस संबंध जो जों दृष्टांत लिखे हैं और जो जो पाठ लिखे, तिनमें अरिहंत या अरिहंतकी प्रतिमा के सिवाय किसी अन्यदेव के आगे किसीने नमुथ्थुणं कहा होवे ऐसा गठ तो है ही नही, परंतु भोले लोकों को फंसाने
और अपने कुमत को स्थापन करन के लिये विना ही प्रयोजन सूत्रपाठ लिखके पोथी बड़ी करी है, इस से मालूम होता है कि जेठमल महामिथ्या दृष्टि और मृषावादी था और उसने द्रौपदी कृत-अरिहंत की प्रतिमाकी पूजालोपने के वास्ते जितनीकुयुक्तियां लिखी हैं सो सर्व अयुक्त और मिथ्या है ॥ . . ... · तथा जेठमल जिनप्रतिमा को अवधिजिनकी प्रतिमा ठहराने वास्ते कहता है कि "सूत्र में अवधिज्ञानी को भी जिन कहा है. इसवास्ते -यह प्रतिमा अवधि जिनकी संभव होती है" उत्तरसत्र में अवधि जिन कहा है सो सत्य है परंतु 'नमुथुणं' केवली अरिहंत या अरिहंतकी प्रतिमा सिवाय अन्यकिसी देवताके आगेकहे का कथन सूत्रमें किसी जगा भी नहीं है, और द्रौपदी ने तो 'नमु. थ्थुणं' कहा है इसवास्ते वो प्रतिमा केवली अरिहंतकी ही थी, और तिसकी ही पूजा महासती द्रौपदी श्राविका ने करी है ॥ .
· फेर जेठमल कहता है कि " अरिहंतने दीक्षा ली तब घर का त्याग किया है इसलिये तिसका घर होवे नही" उत्तर-मालूम होता है कि मूखों का सरदार जेठमल इतना भी नहीं समझता है कि भावतीर्थंकर का घर नहीं होता है, परंतु यह तो स्थापना तीर्थकर की भक्ति निमित्त निष्पन्न किया हुआ घर है, जैसे सत्रों में सिद्ध प्रतिमा का आयतन. यानि घर अर्थात् सिद्धायतन कहा है तैसे ही यहभी जिन घर है,तथा सूत्रोंमें देवछंदा-कहाहै, इसवास्ते