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(११७) संयम लिया है, इसवास्ते द्रौपदी का नियाणा धर्मका घातक नहीं था और चक्रवर्ती तथा वसुदेवको भवप्रत्यय नियाणा जेठमल ने कहा है और जब तक नियाणेका उदय होवे तबतक सम्यक्त्वकी प्राप्ति न होवे ऐसे भी कहा है, तो कृष्ण वासुदेव को सम्यक्त्वकी प्राप्ति कैसे हुई सो जरा विचार कर देखा ! इसले सिद्ध होता है कि जेठमल का लिखना स्वकपोल कल्पित है, यदि आम्नाय विना
और गुरुगम विना केवल सूत्राक्षर मात्र को ही देख के ऐसे अर्थ करोगे तो इसही दशाश्रुतस्कंधमें तीसस्थानके महामोहनी कर्म वांधे ऐसेकहाहै और महामोहनी कर्मकीउत्कृष्टी स्थिति(७० कोटा कोटी सागरोपमकीहै तो परदेशी राजाने घने पंचेंद्रीजीवोंकी हिंसा करी, ऐसे श्रीरायपसेणी सूत्र में कहा है तो तिसको अणुव्रत की प्राप्ति न होनीचाहिये तथा महामोहनी कर्म बांधके संसार में रुलना चाहिये, परंतु सो तो एकावतारी है, तो सूत्रकी यह बात कैसे मिलेगी? इसवास्ते सूत्र वांचना और तिसका अर्थ करना सो गरुगम से ही करना चाहिये,परंतु तुम ढूंढकों को तो गुरुगम है ही नहीं, जिससे अनेक जगा उलटा अर्थ करके महा पाप बांधते हो और सूत्रमें द्रौपदीने पूजा करी वहां सूर्याभ की भलामणा दी है, इससे भी द्रौपदी अवश्यमेव सम्यक्त्ववंती सिद्ध है ; तथा विवाह की महामोहका गिरदी धूम धाम में जिनप्रतिमा की पूजा याद आई, सोपकीश्रद्धावंती श्राविका ही का लक्षण है इसवास्ते द्रौपदी सुलभ बोधिनी ही थी ऐसे सिद्ध होता है।
जेठमल ने लिखा है कि "द्रौपदी के माता पिता भी सम्यग दृष्टि नहीं थे क्योंकि उनोंने मांस मदिरा का आहार बनवाया था" तिसका उत्तर-जेठमलका यह लिखना बिलकुल बेहुदा है, क्योंकि