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:( १९०) अन्नउथ्थिया वा अन्नउथ्थियदेवयाणि वा अन्नउथ्थिय परिग्गहियाई अरिहंतचेइयाई वा वंदित्तए वा नमंसित्तए वा पुग्विं अणा लत्तेणंबालवित्तए वा संलवित्तए वा तेसिं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमंवा दाउंवा अणुप्पदाउं वा णण्णथ्य रायाभिोगेणं गणाभिओगेणंबलाभित्रोगेणंदेवयाभिओगेणं गरुनिग्गहेणं वित्तिकतारणं कप्पड़ मे समणे निग्गंथे फासुएणं एसणिज्जेण असण पाण खाइम साइमेण वध्यपडिग्गह कंबल. पाय पछणणं पाडिहारिय पीढफलग सेज्जासंथारएणं ओसहभेसज्जेणय पडिलामेमाणस्स विहरित्तएत्ति कटुइमंएयाणुरूवं अभिग्गहं अभिगिरह ॥
अर्थ--हे भगवन् ! मुझको न कल्पे क्या न कल्पेसो कहते हैं, आजसे लेके अन्य तीर्थी चरकादि,अन्यतीर्थी के देव हरि हरादिक, और अन्य तीर्थीके ग्रहण किये अरिहंतके चैत्य-जिनप्रतिमा इनको बदना करना, नमस्कार करना,तथा प्रथमसे विना बुलाये बुलाना,वारं वार बुलाना,यहसर्वन कल्पे,तथा तिनको अशन,पान,खादिम,और