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(द ) अन्य श्रावकोंने तथा राजाओं ने भी जिनमंदिर कराये हैं, और उस से सुगतिप्राप्त करी है; जिसका वर्णन प्रथम लिख चुके हैं, फेर जेठा लिखताहै कि जिन प्रतिमा देखके शुभ ध्यान पैदा होता है, तो मल्लिनाथजी को तथा तिनकी स्त्रीरूपकी प्रतिमा को देख के राजे कामतुर क्यों होए ? इस वास्ते स्थापना निक्षेपा वंदनीक नहीं " उत्तर- महासती रूपवंती साध्वी को देखके कितने ही दुष्ट पुरुषों के हृदय में काम विकार उत्पन्न होता है, तो इस करके जेठे की श्रद्धा के अनुसार तोसाध्वी भी वंदनीक न ठहरेगी ? तथा रूपवान् साधु को देख के कितनीक स्त्रियों का मन आसक्त हो जाता है बलभद्रादिमुनि वत्, तो फेर जेठे के माने मूजिब तो साधु भी वंदनीक न ठहरेगा? और भगवान् ने तो साधु साध्वी को वंदना नमस्कार करना श्रावक श्राविकाओं को फरमाया है; इस वास्ते पूर्वोक्त लेखसेंजेठा जिनाजाका उत्थापक सिद्ध होता है परंतु इसवात में समझने का तो इतनाही है कि जिन दुष्ट पुरुषों को साध्वी को देखके तथा जिन दुष्ट स्त्रियों को साधु को देखके काम उत्पन्न होताहै,सो तिन को मोहनी कर्म का उदय और खोटी गतिका बंधन है; परंतु इससे कुछ साधु, साध्वी अदनीक सिद्ध नहीं होते हैं, तैसेहीमल्लिनाथजीको तथातिनकी स्त्रीरूपकी प्रतिमा को देखके ६ राजे कामातुर होए, सो तिन को मोहनी कर्म का उदय है; परंतु इससे कुछ द्रव्य निक्षेपा तथा स्थापना निक्षेपो अवं दनीक सिद्ध नहीं होता है,तथा अनार्य लोकोंको प्रतिमा देखके शुभ ध्यान क्यों नहीं होताहै? ऐसे जठेने लिखा है,परंतु तिसका कारण तो यह है कि तिसने प्रतिमाको अपने शुद्ध देवरूप करके जानी नहीं है, यदि जानलेवेतो तिनको शुभ ध्यान पैदा होवे,और वे आशातना