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(८) को प्रायः ढूंढिये भी मानते हैं तो विचारना चाहिये कि इस में घोड़ा पन क्या है ? परन्तु घोड़े की स्थापना करी है तो उस को घोड़ा ही कहना चाहिये, इसवास्ते स्थापना सत्य समझनी । तथा तुम ढूंढिये खंड के कुत्ते, गौ, भैंस, बैल, हाथी, घोडे., सुअर, आदमी, वगैरह खिलौने खाते नहीं हो, तिन में जीव पना तो कुछ भी नहीं है, परंतु जीवपने की स्थापना है, इस वास्ते खाने योग्य नहीं है, * क्योंकि इस से पंचेंद्री जीव की घात जितना पाप लगता है, ऐसे तुम कहते हो तो इस कथनानुसार तुमारे मानने मूजिब ही स्थापना निक्षेपा सिद्ध होता है। तथा श्री समवायांग सूत्र, दशाश्रुतस्कंध सूत्र, दशवैकालिकादि अनेक सूत्रों में तेतीस आशातना में गुरु सबंधी पाट, पीठ, संथारा प्रमुखको पैरलग जावे,तो गुरुकी आशातना होवे,ऐसे कहा है, इस पाठ से भी स्थापना निक्षेपा वंदनीक सिद्ध होता है, क्योंकि यह वस्तु भी तो अजीव हैं,जैसे पर्वोक्त वस्तुओं में गुरुकी स्थापना होने से अविनय करने से शिष्य को आशातना लगती है, और विनय करनेसे शिष्यको शुभफल होताहै;एसेही श्रीजिन प्रतिमाकी स्थापना से भी जानलेना ॥ तथा देवताओंने प्रभु की वंदना पूजा करी उस को जीत आचार में गिनके उस से देवता को कुछभी पुण्य बंध नहीं होताहै ऐसा सिद्ध किया है, परंतु अरे मूर्ख शिरोमणि ढूंढको! जीत आचार किसको कहतेहै?सो भी तुम समझते नहीं हो,
___कितनेक अज्ञानी हँढिये जिन प्रतिमा के हेष से आज काल इस बात को भी मानने से इनकारी होते हैं, यथा जिला लाहौर मुकाम माझा पट्टी में सिरीचद नामा ढूंढक साधुको एक मुगल ने पूछा कि आप कुत्ते, गो, भैस; वैत, वगैरह खड के खिलौने खाते हैं ? जवाब मिला कि बड़ी खुशी से वाह ! अफसोस !!!