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इहमागच्छत्ता इह चेइआई वंदइ विद्या चारणस्सणं गोयमा उढ एवइएगइ विसए पन्नत्ते ॥ इति ॥
जेठमल, लिखता है कि "जंघाचारण तथा विद्याचारणमुनियोंने श्रीरुचकद्वीप तथा मानुषोत्तर पर्वत पर सिद्धायतन वांदे कहते हो परंतु दोनों ठिकाने तो सिद्धायतन बिलकुल है नहीं तो कहांसे वांदे ?
उत्तर- श्रीमानुषोत्तर पर्वत पर चार सिद्धायतन हैं ऐसे श्रीद्वीप सागर पन्नत्तिसूत्र में कहा है तथा श्रीरत्न शेखरसूरि जो कि महा धुरंधर पंडितथे उन्होंने श्रीक्षेत्रसमास नामा ग्रंथ में ऐसे कहा है - यतः
सुवि इसुयारे इक्कीक्वं नरनगंमि चत्तारि । कूडोवरि जिणभवणा कुलगिरि जिणभवण परिमाणा ।। २५७ ।।
अर्थ - चार इषुकार में एक एक और मानुषोत्तर पर्वत में चार कूट पर चार जिनभवन हैं सो कुलगिरि के जिन भवन प्रमाण है ॥ तत्तो दुगुणपमाणा चउदारात्त वणिय सुरुवा | नंदीसर बावण्णाच कुंडलिकयगि चत्तारि ॥ २५८ ॥
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अर्थ - पूर्वोक्त जिनभवन से दुगुने प्रमाण के चार द्वार वाले और पूर्वाचार्यों ने वर्णन किया है स्वरूप जिन का ऐसे नंदीश्वर में (५२) कुंडलगिरि में चार (४) और रुचक पर्वत पर चार ( ४ ) एवं कुल साठ (६०) जिनभवन हैं। इत्यादि अनेक जैन शास्त्रों में