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के चैत्य वांदे हैं; और दूसरे डिगल में पांडुकवनमें जाके वहांके चैत बांदे हैं, पीछे फिरते हुए एक ही डिगल में यहां आकर के यहां के चैत्य वांदे हैं, इस मूजिव विद्याचारण की ऊर्ध्व गतिका विषय है, सो पाठ यह है :
विद्याचारणस्सणं भन्तेतिरयं के वइ ए गइविसएपन्नत्तेगोयमासे इत्तोए गेण उप्पाएं माणुसुत्तरे पव्वए समोसरणं करेइ करइत्ता तहिं चेद्रआई वंद वंदइत्ता बीएणं उप्पाणं गंदिसरवरदीवे समोसरणं करेइ करइत्ता तहिं चे आई वंदन वंदइत्तात पडिनि
यत्त इह मागच्छइ इह मागच्छत्ता इह चेइआई वंदइ विद्याचारणस्सगं गोयमातिरियं एव इए गइ विसए पन्नते । विद्याचारणस्सणं भंते उट्टं के वहुए गइ विसएपन्नत्ते गोयमा सेणं इत्ती एगेणं उप्पाएणं गंदणवणे समोसरणं करेइ करइत्ता तहिं चेइ आइं वंद दत्ता बितिएगं उप्पारणं पंडगवणे समोसरणं करेइकरइत्ता तहिं चेइआई वंदई वंदइत्ता तओ पडिनियत्त इह मागच्छ