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भी करे नहीं साधुवत् ॥ तथा श्रीउववाइ सूत्र में कहा है कितं महाफलं खलु अरिहंताणं भगवंताणं नाम गोयस्सवि सवण्याए ॥
अर्थ - अरिहंत भगवंत के नाम गोत्र के भी सुनने से निश्चय महाफल होता है इत्यादि सूत्र पाठ से भी नाम निखेपा महाफल दायक सिद्ध होता है |
अरेढूंढो ! ऊपर लिखी बातोंको ध्यान देकर वांचोगे, और विचार करोगे तो स्पष्ट मालूम होजावेगा कि चारों ही निक्षेपे वंदनीक हैं; इस वास्ते जेठमल जैसे कुमतियों के फंदे में न फंसके शुद्ध मार्ग को पिछान के अंगीकार करो, जिससे तुमारे आत्माका कल्याण होवे ॥ ॥ इति ॥
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(१३) नमुना देखके नाम याद आता है
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जेठा मूढमति तेखें प्रश्नोत्तर में लिखता है कि "भगवंतकी प्रतिमा को देखके भगवान् याद आते हैं, इसवास्ते तुम जिनप्रतिमा को पूजते हो तो करकडु आदिक बैल प्रमुख को देखके प्रतिबोध होए है, तो उन बैल प्रमुखको वंदनीक क्यों नहीं मानते हो ? तिसका उत्तरअरे ढूंढको ! हम जिसके भाव निक्षेपे को वांदते पूजते हैं, तिसके ही नामादि को पूजते हैं; और शास्त्रकारों ने भी ऐसे ही कहा है, हम भाव बैलादि को पूजते नहीं हैं; और न पूजने योग्य मानते हैं, इसी वास्ते तिनके नामादिको भी नहीं पूजते हैं परंतु तुमारे माने बत्तीस सूत्रों में तो करकंडु, दुमुख, नमिराजा, और नगइ राजा, क्या क्या
* श्री रायप सेषी सूत्र तथा श्री भगवती सूत्र में भी ऐसे ही कहा है।