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और स्थापना अरिहंत को आनंद श्रावक, अंबड तापस, महासती द्रौपदी, वग्गुर श्रावक, तथा प्रभावती प्रमुख अनेक श्रावक श्राविकाओं ने ओर श्रीगौतमस्वामी, जंघाचारण, विद्याचारणादि अनेक मुनियोंने, तथा सूर्याभ, विजयादि अनेक देवताओंने वंदना करी है, तिनके अधिकार सूत्रों में प्रसिद्ध हैं, श्रीमहानिशीथ सूत्रमें कहा है कि साधु प्रतिमाको वंदना न करे तो प्रायश्चित्त आवे, इस तरह नाम और स्थापना वंदनीक हैं, तो द्रव्य और भाव वंदनीक हैं इस में क्या आश्चर्य !
जेठमल लिखता है कि "कृष्ण तथा श्रेणिक को आगामी चौवीसी में तीर्थंकर होने का जब भगवंतने कहा तब तिनको द्रव्य जिन जानकर किसीने वंदना क्यों नहीं करी ?" - यह लिखना बिलकुल विपरीत है क्योंकि उस ठिकाने वंदना करने वा न करने का अधिकार नहीं है, तथापि जेठे ने स्वमति कल्पना से लिखा है, कि किसी ने वंदना नहीं करी है तो बताओ ऐसे कहां लिखा है ?*
और मल्लिकुमारी स्त्री वेषमें थी इस वास्ते वंदनीक नहीं, तैसे ही तिसकी स्त्रीवेष की प्रतिमा भी वंदनीक नहीं तथा स्त्री तीर्थंकरी का होना अछेरे में गिना जाता है, इस वास्ते सो विध्यनुवाद में नहीं आता है ॥
तथा जेठे ने भद्रिक जीवों को भूलाने वास्ते लिखा है, कि
* " श्रीप्रथमानुयोग" शास्त्र जिसमें इतनी बातों का होना "श्रीसमवायांगसूत्र” तथा "श्रीनंदिसूत्र” मैं फरमाया है । तथा हि
सेकित मूलढमाणुओगे पत्थण अरहंताणं भगवंताणं पूव्व भवा देवलो गगमणाणि आउचवणाणि जम्मणाणिअ अभिसेय रायवरसिरीओसीआओ पव्वज्जाओतवोयभत्ता केवलणाणुपाओतित्थपवत्तणा