________________
निक्षेप बंदना होतीथी और काउसग करनेके आलावेमें “अरिहंतः चेइयाणं करेमिकाउसग्गं बंदणवत्तिआए" इत्यादि पाठ पढते हुए स्थापना निक्षेपा बंदनीक सिद्ध होता है और यह पाठ श्रीआवश्यक सूत्रमें है, इस आलावे को ढूडिये नहीं मानते हैं इस वास्ते उन के मस्तक पर आज्ञाभंग रूप वज्रदंडका प्रहार होता है ॥
श्रीभगवतीसूत्रकी आदिमें श्रीगणधरदेवने ब्राह्मी लीपिको नमस्कार करा है सो जैसे ज्ञानका स्थापना निक्षेपाबंदनीक है तैसे हीश्रीतीर्थंकरदेवका स्थापनानिक्षेपाभीबंदना करने योग्य है।
तथा अरे दढियो ! तुम जब "लोगस्सउज्जोअगरे” पढते हो तब "अरिहंते कित्तइस्सं इस पाठसे चौवीस अरिहंतकी कीर्तः ना करतेहो,सो चौवीस अरिहंत तो इस वर्तमानकालमें नहीं हैं तो तुम बंदना किनको करतहो ? जेकर तुम कहोगे कि जो चौवीस प्रभु मोक्षमें हैं उनकी हम कीर्तना करते हैं तो वो अरिहंत तो अब सिद्ध है इसवास्ते “सिद्धे कित्तइस्लं" कहना चाहिये परंतु तुम ऐसे कहते नहीं हो ? कदापि कहोगे कि अतीत कालमें जो चौवीस तीर्थंकर थे उनको बंदना करते हैं तो अतीत कालमें जो वस्तु हो गई सो द्रव्य निक्षेपा है और द्रव्यनिक्षेपे को तो तुम बंदनीक नहीं मानते हो, तो बतावो तुम बंदना किनको करते हो ? जेकर ऐसे कहोगे कि अतीत कालमें जैसे अरिहंत थे तैसे अपने मनमें कल्पना करके बंदना करते है, तो वो स्थापना निक्षेपा है, और स्थापना निक्षेपा तो तुम मानते नहीं हो, तो बताओ तुम बंदना किन को करते हो ? अंतमें इस बात का तात्पर्य इतना ही है कि ढूंढिये अज्ञानके उदयसेऔर द्वेष बुद्धिसे भाव निक्षेपे बिना अन्य निक्षेपे बंदनीक नहीं मानते हैं परंतु उनको बंदना जरूर करनी पड़ती है ..