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परिवार कहा है सो तो दीक्षा लेने समयका है परंतु ग्रंथों में५०००० केवली की कुल संपदा गौतमस्वामीकी वर्णन करी है।
(११) नमत्थणं के पीछले पाठकी बाबत
जेठा मूढमति ११ वें प्रश्नमें लिखता है कि "नमुत्थुणंमें अधिक पद डाले हैं यह लिखना जेठमलका असत्य है, क्योंकि हमने नमुत्थुणं में कोई भी पद वधाया नहीं है, नमुत्थुणंतो भाव अरिहंत विद्यमानों की स्तुति है,और जो अंतकी गाथा है सो द्रव्य अरिहंतकी स्तुति है ढूंढिये द्रव्य अरिहंतको बंदना करनी निषेध करते हैं, क्योंकि दुढिये उनको असंजती समझते हैं इससे मालूम होता है कि ढूंढियोंकी बुद्धिही भ्रष्ट होई हुई है। - श्रीनंदिसूत्रमें २६ आचार्य जिनमें २४ स्वर्गमें देवता हुए हैं तिनको नमस्कार करा है तो नमुत्थुणके पिछले पाठमें क्या मिथ्या है ? जेकर ढूंढिये इसीकारणसे नंदिसूत्रको भी झूठा कहेंगे,तो जरूर उन्होंने मिथ्यात्व रूप मदिरापान करके झूठा बकवाद करना शुरु किया है ऐसे मालूप्न होवेगा, तथा अपने गुरु को जो मरभए हैं और जो जिनाज्ञाके उत्थापकनिन्हवहोनेसे हमारी समझ मुजिब तो नरक तिर्यंचादि गतिमें गये होवेंगे, मूर्ख दढिये उन को देवगति में गये समझ कर उनको वंदना क्यों करते हैं ? क्योंकि वो तो असंयती, अविरति, अपञ्चरवाणी हैं ! कदापि ढूंढिये कहें, कि हमतो गुरुपदको नमस्कार करते हैं, तो अरे मूढों हमारी बंदना भी तो तीर्थंकर पदको ही है और सो सत्य है तथा इसीसे द्रव्य निक्षेपाभी बंदनीक सिद्ध होता है ।।
श्रीआवश्यकसूत्रमें नमुत्थुणंकी पिछली गाथा सहित पाठ