________________
इसी सूत्र में उदायनराजाकी प्रभावती राणीने जिनमंदिर बन वाया और नाटकादि जिनपूजा करी ऐसा अधिकार है, यतःअंतेउरचयहरं कारियं पभावतिएगहातातिसंभंअच्चेइअन्नयादेवीणच्चरायावीणंवायेइ
भावार्थ-प्रभावती राणीने अंतेउर (अपने रहने के महल) में चैत्यघर अर्थात् जिन मंदिर कराया, प्रभावती राणी स्नान करके प्रभात मध्यान्ह सायंकाल तीन वक्त तिस मंदिर में अर्चा (पूजा) करती है एकदा राणी नृत्य करती है और राजा आपवीणा वजाताहै,
प्रथमानुयोगमें अनेक श्रावक श्राविकायोंका जिन मंदिर बनाने का तथा पूजा करनेका अधिकार है ।।
इसी सूत्र में द्वारिका नगरी में श्रीजिनप्रतिमा पूजने का भी अधिकार है।
शालिभद्र के घरमें जिनमंदिर तथा रत्नोंकी प्रतिमा थीं और वो मंदिर शालिभद्र के पिताने अनेक द्वारों करके सुशोभित देव वि. मान करके सदृश्य बनाया था।
"यतः शालिभद्र चरित्रे" प्रधानानेकधारत्न मयाईविम्बहेतवे। देवालयं च चक्रसौ निजचैत्य गृहोपमम्॥५०
ऊपर मुजिब कथन है तो क्या जेठेमूढमतिने शालिभद्रका चरित्र नहीं देखा होगा ? कदापि दूढिये कहें कि हम शालिभद्र का।चरित्र नहीं मानते हैं * तो बत्तीस सूत्रमें शालिभद्रका अधिकार
* बत्से टूढियशान्ति ट्रमा अधिकार मानते हैं।