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(४ ) देव सानिध्यसें श्रीशंखेश्वर पाश्र्वनाथ की प्रतिमा तथा श्रीअष्टापद तीर्थ वगैरह रहे इसमें कुछ भी असंभव नहीं है, तथा श्री जंबूद्वीप पन्नत्तिसूत्रमें प्रथम आरे भरतक्षेत्रका वर्णन नीचे मूजिब है, :तीसेणं समए भारहवासे तत्थ २ बहवे ब शाराइओ पणणत्ताओ किराहाओ कियहाभासाओ जाबमणोहराओरयमत्तछप्पय कोरग भिंगारग कोडलग जीव जीवगदिमहकविल पिंगल लखग कारंडक चक्कवाय कलहंस सारस अणेग सउणगण मिहुगा विरियाओसङ्ण णत्तिए महुर सरणादि ताउ संपिडिय गाणाविहा गच्छवावी पुरकरिणी दीहियासु इत्यादि।
अर्थ-तिस समय भरतक्षेत्र में तहां तहां वहुत बनराज हैं, कृष्ण कृष्णवर्णशोभावत् यावत् मनोहरहै मद करके रक्त ऐसे भ्रमर, कोरक. भींगारक, कोडलक, जीव जीवक, नंदिमुख, कपिल,पिंगल, लखग, कारंडक,चक्रवाक, कलहंस,सारस अनेक पक्षियोंके मिथुन (जोडे) तिनों करके सहित है वृक्ष मधुर स्वर करके इकठे हुए हैं, नानाप्रकारके गुच्छे वोडीयां पुष्करिणी, दीर्घिका वगैरह में पक्षी विचरते हैं,
ऊपर लिखे सूत्रपाठमें प्रथम आरे भरतक्षेत्रमें बौडी, पुष्करिणी प्रमुखका वर्णन किया है तो विचारो कि वौड़ी किसने कराई ? शाश्वती तो है नहीं, क्योंकि सूत्रोंमें वे बौडीयां शाश्वती कही नहीं हैं