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नैवेद्य, अथवा तिसके निमित्त निकला अन्न साधु को नहीं लेना ऐसे होता है।
(३) नाममाला वगैरह कोश ग्रन्थो में भी बलि शब्द का अर्थ पूजा कहा है-यतः- पूजाहणासपांचों उपहार बली समौ। ' (४) निशीथ चूर्णि तथा आवश्यक नियुक्ति में भी,बलि शब्द से देव के आगे धरने का नैवेद्य कहा है ॥,
(५) वास्तुक शास्त्र में तथा ज्योतिःशास्त्र में भी घर देवता की पूजा करके भूतबलि देके घरमें प्रवेश करना कहा है-यतः
गृह प्रवेशं सुविनीत वेषः सौम्येयने वासर पूर्व आगे। कुर्याद् विधा आलय देवताची कल्याणधिर्भत बलिक्रियां च । १॥ इस पाठ में भी बलि शब्द करके नैवेद्य पूजा होती है।
ऊपर लिखे दृष्टान्तों से 'कयबलिकम्मा' (कृत बलि कर्मा) शब्द का अर्थ देव पूजा सिद्ध होता है , परन्तु मुर्ख शिरोमणि जेठे ने कय बलिकम्मा अर्थात् 'पाणी की करलियां करी' ऐसा अर्थ करो है सो महा मिथ्या है,तथा कय को उय मंगल अर्थात् "कौतुकमंगलीक पाणी की अंजलि भरके कुरलियां करी"ऐसा अर्थ करा . है, सो भी महा मिथ्या है, किसी भी कोष में ऐसा अर्थ करा नहीं है और न कोई पंडित ऐसा अर्थ करताभी है परन्तु महा मिथ्या दृष्टि ढूंढिये व्याकरण, कोष, काव्य,अलंकार,न्याय, प्रमुखके ज्ञाने बिना अर्थ का अनर्थ करके उत्सूत्र प्ररूप के अनन्त संसारी होते हैं।