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रखे हुए देव की पूजा करके पीछे बाहिर निकलेकर बडे. देवस्थान में पूजा करने का कहा है ॥
१०-११ में प्रश्न में “कोणिक राजा और भरत चक्रचर्ति के अधिकार में कयबलिकम्मा शब्द नहीं है तो उन्होंने देव पूजा क्यों नहीं करी" इसका उत्तर-अरे देवानां प्रियो ! इतना तो समझो कि बन्दना निमित्त जाने की अति उत्सुकता के लिये उन्होंने देव पूजा उस वक्त न करी होवे तो उस में क्या आश्चर्य है ? तथा इस तुमारे कथन सेही कयवलिकम्मा शब्दका अर्थ देव पूजा सिद्ध होता है, क्योंकि कयवलिकम्मा शब्द का अर्थ तुम ढुढिये पाणी की करलियां करी' ऐसा करते हो तो क्या स्नान करते हुए उन्हों ने कुरलियां न करी होगी?नहीं करलियांतो जरूर करी होंगी,परन्तु पूर्वोक्त कारणमें देव पूजा न करी होगी; इसीवास्ते पूर्वोक्त अधिकार में कयवलिकम्मा शब्द शास्त्रकार ने नहीं लिखा है इसतरह हरएक प्रश्नमें कयबलिकम्मा शब्द का अर्थ देव पूजा ऐसा सिद्ध होता है तथा टीका में और प्राचीन लिखत के टव्वे में भी कयबलिकम्मा शब्द का अर्थ देव पूजा ही लिखा है तथा अन्यदृष्टान्तों से भी यही अर्थ सिद्ध होता है-यथाः--
(१) श्रीरायपसेणी सूत्र में सूर्याभ के अधिकार में जब सूर्याभ देवता पूजा करके पीछे हटा तब बधा हुआ पूजाका सामान उस ने बलिपीठ ऊपर रक्खा, ऐसा सूत्र पाठ है, तिस जगह भी पूजो पहार की पीठि का, ऐसा अर्थ होता है । . ...(२)यति प्रति क्रमणसूत्र(पगाम सिष्झाय)में मंडि पाहुडियाए वलि पाहुडियाए य हपाठहै,इसका अर्थभिखारियोंके वास्ते चपप्पणी वगैरहमें रखा हुआ अन्न साधुको नहीं लेना;तथा देवकैआगेधराया