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(१६) झूठा है । यदि ढूंढीय हृदय चक्षुको खोल के देखेंगे, तो मालूम हो जावेगा, कि केवल शाश्वती जिन प्रतिमाके भुवनको ही शास्त्रों में सिद्धायतन कहा हुआ है,और इसीवास्ते सिद्धायतन शब्दकाजोअर्थ टीकाकारोंने करा है,सो सत्य है और जेठेकाकरा अर्थसत्य नहीं है।
और जेठे ने लिखा है कि "वैताढय पर्वतके ऊपरके नव कूटों में सेएकको ही सिद्धायतन कहाहै,शेष आठको नहीं;तिसका कारण यह है कि शेष क्ट देव देवी अधिष्ठित हैं,इस लिये उनके नाम और और कहे हैं और इस कूट ऊपर कुछ नहीं है, इसवास्ते इसको सिद्धायतन कूट कहा है"इसका उत्तर-अरे कुमतिओ ! बताओ तो सही, कहां कहाहै कि दूसरे कूटों पर देव देवियां हैं, और इसकूट ऊपर नहीं हैं, मनः कल्पित बाते बनाके असत्य स्थापन करना चा हते हो सोतो कभी भी होना नहीं है, परंतु ऊपरके लेखसे तो सिडायतन नामको पुष्टि मिलती है। क्योंकि जिस कूटके ऊपर सिद्धायतन होता है, उसही कूटको शास्त्रकारने सिद्धायतन कुट कहा है।
तथा श्रीजीवाभिगम सूत्रमें सिद्धायतनको विस्तारपूर्वक अधिकार है, सो जरा ध्यान लगाके वांचोंगे तो स्पष्ट मालूम होजावेगा कि उसमें(१०८) शाश्वते जिनबिंबहै, और अन्यभी छत्रधार चामरधार वगैरह बहुत देवताओं की मूर्तियां हैं इससे यही निश्चित होता है कि सिद्ध प्रतिमाके भुर्वनको ही सिद्धायतन कहा है ॥ . __तथा कई ढूंढीये सिद्धायतनमें शाश्वती जिन प्रतिमा मानते हैं, और तिसको सिद्धायतन ही कहते हैं, परंतु जेठेने तो इसबात का भी सर्वथा निषेध करा है, इससे यही मालूम होता है कि बेशक जेठमल्ल महा भारी कर्मी था॥ इति ॥