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(६) पजाकरी होवे,तो सूत्रपाठ दिखाओ,मतलब यह कि जेठेने तुगीया. नगरीके श्रावकने घरके देवकी पूजाकरी, इस विषयमें जो कुतकें करी हैं, सो सर्व तिस की मूढता की निशानी है; तुंगीया नगरी के श्रावकने अपने घरमें रहे जिनभवनमें अरिहंतदेवकी पूजाकरी यह तो निःसंदेह है, श्रीउपासक दशांगसूत्र में आनंद श्रावकके अ. धिकारमें जैसापाठ है, तैसा सर्व श्रावकोके वास्ते जानलेना इस वास्ते मूढमति जेठने जो गोत्रदेवताकी पूजा तो श्रावकके वास्ते सिद्धकरी, और जिनप्रतिमाकी पूजा निषेधकरी, सो उसका महा मिथ्यादृष्टि पणेका चिन्ह है। इति॥
(e) सिद्धायतन शब्दका अर्थ
नवमें प्रश्नोत्तर में जेठे मूढमति ने 'सिद्धायतन' शब्दके अर्थको फिराने वास्ते अनेक युक्तियां करी हैं, परंतु वे सर्व झूठी हैं क्योंकि 'सिद्धायतन' यह गुण निष्पन्न नाम है, सिद्ध कहिये शा. श्वती अरिहंतकी प्रतिमा, तिसका आयतन कहिये घर,सोसिद्धाय तन । यह इसकायथार्थ अर्थ है जेठेने सिद्धायतन नामगुण निष्पन्न नहीं है, इसकी सिद्धिके वास्ते ऋषभदत्त और संजति राजा प्रमुख का दृष्टांत दिया है, किजैसे यह नामगुण निष्यन्नमालूम नहीं होते हैं, तैसे सिद्धायतन भी गुण निष्पन्न नाम नहीं है, यह उसका लिखना असत्य है, क्योंकि शास्त्रकारीने सिद्धांतों में वस्तु निरूपण जो नाम कहे हैं वे सर्व नाम गुण निष्पन्न ही हैं, यथाः--
(१) अरिहंत, (२) सिद्ध, (३) आचार्य, (४) उपाध्याय, (५) साधु, (६) सामायिकचारित्र, (७) छेदों स्थापनीयचारित्र, (८) परि हार विशुद्धिचारित्र, (९) सूक्ष्मसंपरायचारित्र, (१०) यथाख्यातचा