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तथा नाममालामें कौयेको बलिभुक कहा है, तो क्या ढूंढियों के कहने मूजिव कोये पाणी की कुरलियां खाते हैं ? या पीठी खाते हैं ? नहीं, ऐसे नहीं है, किन्तु वे देवके आगे धरी हुई वस्तुके खाने वाले हैं; इस वास्ते इसका नाम बलिभुक है,और इस से भी बलिकम्मा शब्द का अर्थ देव पूजा सिद्ध होता है
तथा जेठेने द्रौपदीके अधिकार में लिखा है कि "स्नान करके पीछे वटणा मला" देखो कितनी मूर्खता! स्नान करके वटणा मलना, यह तो उचित ही नहीं,ऐसी कल्पना तो अज्ञ बालक भी नहीं कर सकता है; परन्तु जैसे कोई आदमी एक वार झूठ बोलता है, उसको तिस झूठके लोपने वास्ते बारंबार झूठ बोलना पड़ता है, तैसेकेवल एक अर्थ के फिराने वास्ते जैसे मनमे आया तैसे लिखते हुए जेठे ने संसार वनेका जरासा भी डर नहीं रखा ॥
तथा जेठेने लिखा है कि "सम्यग्दृष्टि अन्य देवको पूजते हैं" सो मिथ्या है, क्योंकि अन्य देवको श्रावक पूजते नहीं हैं, मिथ्या दृष्टि पूजते हैं और जिस श्रावकने गुरुमहाराजके मुखसे षट् आगार सहित सम्यक्त्व उच्चारण करा होवे, सो शासन देवता प्रमुख सम्यग् दृष्टिकी भक्ति करता है, चोहसाधर्मीके संबंध करके करता है; और वो अन्य देव नहीं कहाता है, और जो कोई सम्यग्दृष्टि किसी अन्य देवको मानेगा तो वो यातोसम्यग्दृष्टिही देवता होगा. या कोई उपद्रव करने वाला देवता होगा, और उस उपद्रव करने वाले देवता निमित्त श्रावककों 'देवाभिओगणं' यह आगार है, परंतु तुंगीयानगरीके श्रावकोंवोच्चा कस्ट आनपड़ाथा,जो उन्होंने अन्य देवकी पूजाकरी ? जेठा वहता है “गांत्र देवताकी पूजाकरी" से किस पाठका अर्थ है ? गोत्र देवताकी किसी भी श्रावकने