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और उनको आहार पानी वगैरह देने वालोंको अनंता संसार परिभ्रमण करना पड़ेगा,हाय !अफशोस! विचारे अनजान लोक तुमारे जैसे कुपात्रको आहार पानी वगैरह देवें, और उसमें पुण्य समझें, उनकी स्थितितो उलटी अनंत संसार परिभ्रमणकी होती है, तो उससे तो बेहतर है कि उन रिखों को अपने घरमें आनेही न देवें कि जिससे अनंत संसार परिभ्रमण करना न पडे.॥ ___ और श्रीसूयगडांगसूत्र के अध्ययन (२१) में तथा श्रीभगवती सूत्रके शतक (८) में रोगादि कारणमें आधाकर्मी आहारकी आज्ञा है, कोरम विना नहीं, सो पाठ प्रथम लिख आए हैं, जेठे ढूंढकने यह पाठ क्यों नहीं देखा ? भाव नेत्र तो नहीं थे, परंतु क्या द्रव्य भी नहीं थे ?
तथा श्रीभगवती सूत्रमें कहा है कि रेवती श्राविकाने प्रभुका दाहज्वर मिटाने निमित्त बीजोरापाक कराया, और घोडे के वास्ते कोलापाक कराया,प्रभु केवलज्ञानके धनीने तो अपने वास्ते बनाया बीजोरापाक लेना निषेध किया और कोलापक लानेकी सिंहा अणगारको आज्ञाकरी, वो ले आया, और प्रभुने रागद्वेष रहित पणे अंगीकार कर लिया,परंतु बीजोरापाक प्रभु निमित्त बनाके रेवती श्राविका भावे तो "करेमाणे करे” की अपेक्षा विहराय चुकी थी,तो तिसने कोई अल्प आयुष्य वांधा मालूम नहीं होता है, किंतु तीर्थकर गोत्र बांधा मालूम होता है *
इसवास्ते श्रीजैनधर्मकी स्याहादशैलि समझे विना एकांत पक्ष खेंचना यह सम्यग्दृष्टि जीवका लक्षण नहीं है ॥ इति ॥
*देखो ठापांगसूच तथा समवायाग सूत्र ।
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