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घणे ठिकाने लोक ढूंढिये और ढूंढनियोंके दर्शनार्थ जाते हैं, तथा aasti देवजी रिखको वंदना करने वास्ते कच्छ मांडवीसे जानकी बाई संघ निकालके आई थी, उस वक्त उसको छैणे बजाते हुए, गुलाल उडाते हुए, बडी धूमधाम से सामेला करके नगर में ले आये थे, इस तरां कितने ही ढूंढीये श्रावक संघ निकाल निकालके जाते है, इसमें तो तुम पुण्य मानते हो कि जिसकी गतिका भी कुछ ठिकाना नहीं (प्रायः तो दुर्गति ही होनी चाहिये) और श्रीवीतराग भगवान् तो निश्चय मोक्ष ही गये हैं जिनका अधिकार शास्त्रों में ठिकाने ठिकाने है, तिनका सघ वगैरह निकालके यात्रा करनेमें पाप कहते हो सो तुमारा पाप कर्मका ही उदय मालूम होता है ॥ इति ॥
(७) श्री शत्रु जय शाश्वता है ।
सातवें प्रश्नोत्तर में जेठेने लिखा है कि "जम्बूद्वीप पन्नति सूत्र में कहा है कि भरतखंड में वैताढ्य पर्वत और गंगा सिन्धु नदी वर्जके सर्व छट्टे आरे में विरला जायेंगे, तो शत्रुंजय तीर्थ शाश्वता किस तरां रहेगा" इस का उत्तर - यह पांठ तो उपलक्षण मात्र है क्योंकि गंगासिन्धुके कुंड, ऋषभकूट पर्वत, (७२) बिल, गंगासिंधु की वेदिका प्रमुख रहेंगे तैसे शत्रुंजय भी रहेगा !
जेठा लिखता है कि "कि पर्वत नहीं रहेगा, ऋषभकूट रहेगा वाहरे दिनमें आंधे जेठे ! सूत्र में तो लिखा है उस भकूड पव्वय अर्थात् ऋषभकूट पर्वत ! और जेठालिखता है, ऋषभकूट पर्वत नहीं ! वाह ! धन्य है दुढियो तुमारी बुद्धि को !
और जो जेठेने लिखा है " शाश्वती वस्तु घटती बढ़ती नहीं है सो भी झूठ है क्योंकि गंगा सिंधुका पाट, भरतखंडकी भूमिका,